"कपिल" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
अश्वनी भाटिया (चर्चा | योगदान) |
Maintenance (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - '==टीका-टिप्पणी==' to '==टीका टिप्पणी और संदर्भ==') |
||
पंक्ति ६: | पंक्ति ६: | ||
*[[रामायण]] में कपिल ॠषि-<br /> जल की खोज में थके-मांदे [[राम]], [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] कपिल की कुटिया में पहुंचे। कपिल की पत्नी सुशर्मा ने उन्हें ठंडा जल दिया। तभी समिधाएं एकत्र करके कपिल भी अपनी कुटिया पर पहुंचे। वहां धूलमंडित पैरों से आये उन तीनों अतिथियों का निरादर करके कपिल ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। आंधी-तूफान और वर्षा से बचने के लिए उन्होंने एक बरगद की छाया में आश्रय लिया। इस वृक्ष की छाया में साक्षात हलधर और नारायण आये हैं वे तीनों वृक्ष की छाया में सो रहे थे। सुबह उठे तो देखा, एक विशाल महल में गद्दे पर सो रहे हैं रात-भर में यक्षपति ने उनके लिए उस महल का निर्माण कर दिया थां वहां रहते हुए वे निकटस्थ [[जैन]] मंदिर के श्रमणों को यथेच्छ दान दिया करते थें अगले दिन कपिल समिधा आकलन के लिए जंगल में गये तो महल देखकर विस्मित हो गये। वहां के निवासी जैन मतावलंबियों को दान देते हैं, यह जानकर उन्होंने जैनियों से गृहस्थ-धर्म की दीक्षा ली। वे दोनों महल में गये तो उन तीनों को पहचानकर बहुत लज्जित हुए। राम ने उनका सत्कार करके उन्हें धन प्रदान किया। कपिल ने नि:संग होकर प्रव्रज्या ग्रहण की। वर्षाकाल के उपरांत उन तीनों ने वहां से प्रस्थान किया। यक्षपति ने राम को स्वयंप्रभ नाम का हार, लक्ष्मण को मणिकुण्डल तथा सीता को चूड़ामणिरत्न उपहारस्वरूप समर्पित किये। उनके प्रस्थान के उपरांत यक्षराज ने उस मायावी नगरी का संवरण कर लिया<ref>पउम चरित, 35।-36।1-8।–</ref>। | *[[रामायण]] में कपिल ॠषि-<br /> जल की खोज में थके-मांदे [[राम]], [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] कपिल की कुटिया में पहुंचे। कपिल की पत्नी सुशर्मा ने उन्हें ठंडा जल दिया। तभी समिधाएं एकत्र करके कपिल भी अपनी कुटिया पर पहुंचे। वहां धूलमंडित पैरों से आये उन तीनों अतिथियों का निरादर करके कपिल ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। आंधी-तूफान और वर्षा से बचने के लिए उन्होंने एक बरगद की छाया में आश्रय लिया। इस वृक्ष की छाया में साक्षात हलधर और नारायण आये हैं वे तीनों वृक्ष की छाया में सो रहे थे। सुबह उठे तो देखा, एक विशाल महल में गद्दे पर सो रहे हैं रात-भर में यक्षपति ने उनके लिए उस महल का निर्माण कर दिया थां वहां रहते हुए वे निकटस्थ [[जैन]] मंदिर के श्रमणों को यथेच्छ दान दिया करते थें अगले दिन कपिल समिधा आकलन के लिए जंगल में गये तो महल देखकर विस्मित हो गये। वहां के निवासी जैन मतावलंबियों को दान देते हैं, यह जानकर उन्होंने जैनियों से गृहस्थ-धर्म की दीक्षा ली। वे दोनों महल में गये तो उन तीनों को पहचानकर बहुत लज्जित हुए। राम ने उनका सत्कार करके उन्हें धन प्रदान किया। कपिल ने नि:संग होकर प्रव्रज्या ग्रहण की। वर्षाकाल के उपरांत उन तीनों ने वहां से प्रस्थान किया। यक्षपति ने राम को स्वयंप्रभ नाम का हार, लक्ष्मण को मणिकुण्डल तथा सीता को चूड़ामणिरत्न उपहारस्वरूप समर्पित किये। उनके प्रस्थान के उपरांत यक्षराज ने उस मायावी नगरी का संवरण कर लिया<ref>पउम चरित, 35।-36।1-8।–</ref>। | ||
− | ==टीका | + | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
<references/> | <references/> | ||
==सम्बंधित लिंक== | ==सम्बंधित लिंक== |
०७:११, २९ अगस्त २०१० का अवतरण
कपिल / Kapil
- कपिल ॠषि की माता का नाम देवहुती व पिता का नाम ॠषि कर्दम था।
- ये भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक कहे जाते हैं।
- ये सांख्य दर्शन के जन्मदाता भी है।
- रामायण में कपिल ॠषि-
जल की खोज में थके-मांदे राम, सीता और लक्ष्मण कपिल की कुटिया में पहुंचे। कपिल की पत्नी सुशर्मा ने उन्हें ठंडा जल दिया। तभी समिधाएं एकत्र करके कपिल भी अपनी कुटिया पर पहुंचे। वहां धूलमंडित पैरों से आये उन तीनों अतिथियों का निरादर करके कपिल ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। आंधी-तूफान और वर्षा से बचने के लिए उन्होंने एक बरगद की छाया में आश्रय लिया। इस वृक्ष की छाया में साक्षात हलधर और नारायण आये हैं वे तीनों वृक्ष की छाया में सो रहे थे। सुबह उठे तो देखा, एक विशाल महल में गद्दे पर सो रहे हैं रात-भर में यक्षपति ने उनके लिए उस महल का निर्माण कर दिया थां वहां रहते हुए वे निकटस्थ जैन मंदिर के श्रमणों को यथेच्छ दान दिया करते थें अगले दिन कपिल समिधा आकलन के लिए जंगल में गये तो महल देखकर विस्मित हो गये। वहां के निवासी जैन मतावलंबियों को दान देते हैं, यह जानकर उन्होंने जैनियों से गृहस्थ-धर्म की दीक्षा ली। वे दोनों महल में गये तो उन तीनों को पहचानकर बहुत लज्जित हुए। राम ने उनका सत्कार करके उन्हें धन प्रदान किया। कपिल ने नि:संग होकर प्रव्रज्या ग्रहण की। वर्षाकाल के उपरांत उन तीनों ने वहां से प्रस्थान किया। यक्षपति ने राम को स्वयंप्रभ नाम का हार, लक्ष्मण को मणिकुण्डल तथा सीता को चूड़ामणिरत्न उपहारस्वरूप समर्पित किये। उनके प्रस्थान के उपरांत यक्षराज ने उस मायावी नगरी का संवरण कर लिया[१]।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पउम चरित, 35।-36।1-8।–
सम्बंधित लिंक
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- ॠषि-मुनि
- अंगिरा|अंगिरा
- अगस्त्य|अगस्त्य
- अत्रि|अत्रि
- अदिति|अदिति
- अनुसूया|अनुसूया
- अपाला|अपाला
- अरुन्धती|अरुन्धती
- आंगिरस|आंगिरस
- उद्दालक|उद्दालक
- कण्व|कण्व
- कपिल|कपिल
- कश्यप|कश्यप
- कात्यायन|कात्यायन
- क्रतु|क्रतु
- गार्गी|गार्गी
- गालव|गालव
- गौतम|गौतम
- घोषा|घोषा
- चरक|चरक
- च्यवन|च्यवन
- त्रिजट मुनि|त्रिजट
- जैमिनि|जैमिनि
- दत्तात्रेय|दत्तात्रेय
- दधीचि|दधीचि
- दिति|दिति
- दुर्वासा|दुर्वासा
- धन्वन्तरि|धन्वन्तरि
- नारद|नारद
- पतंजलि|पतंजलि
- परशुराम|परशुराम
- पराशर|पराशर
- पुलह|पुलह
- पिप्पलाद|पिप्पलाद
- पुलस्त्य|पुलस्त्य
- भारद्वाज|भारद्वाज
- भृगु|भृगु
- मरीचि|मरीचि
- याज्ञवल्क्य|याज्ञवल्क्य
- रैक्व|रैक्व
- लोपामुद्रा|लोपामुद्रा
- वसिष्ठ|वसिष्ठ
- वाल्मीकि|वाल्मीकि
- विश्वामित्र|विश्वामित्र
- व्यास|व्यास
- शुकदेव|शुकदेव
- शुक्राचार्य|शुक्राचार्य
- सत्यकाम जाबाल|सत्यकाम जाबाल
- सप्तर्षि|सप्तर्षि
</sidebar>