"गीता 16:17" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - '{{menu}}<br />' to '{{menu}}')
छो (Text replace - 'पुरूष' to 'पुरुष')
पंक्ति २२: पंक्ति २२:
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
  
वे अपने-आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले घमण्डी पुरूष धन और मान के मद से युक्त होकर केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा पाखण्ड से शास्त्र विधि रहित यजन करते हैं ।।17।।  
+
वे अपने-आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले घमण्डी पुरुष धन और मान के मद से युक्त होकर केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा पाखण्ड से शास्त्र विधि रहित यजन करते हैं ।।17।।  
 
   
 
   
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
पंक्ति ३३: पंक्ति ३३:
 
|-
 
|-
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
ते = वे ; आत्मसंभाविता: = अपने आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले ; स्तब्धा: = घमण्डी पुरूष ; धनमानमदान्विता: = धन और मानके मदसे युक्त हुए ; अविधिपूर्वकम् = शास्त्रविधि से रहित ; नामयज्ञै: = केवल नाममा़त्र के यज्ञों द्वारा ; दम्भेन = पाखण्ड से ; यजन्ते = यजन करते हैं ;
+
ते = वे ; आत्मसंभाविता: = अपने आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले ; स्तब्धा: = घमण्डी पुरुष ; धनमानमदान्विता: = धन और मानके मदसे युक्त हुए ; अविधिपूर्वकम् = शास्त्रविधि से रहित ; नामयज्ञै: = केवल नाममा़त्र के यज्ञों द्वारा ; दम्भेन = पाखण्ड से ; यजन्ते = यजन करते हैं ;
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}

१२:०५, १४ फ़रवरी २०१० का अवतरण

गीता अध्याय-16 श्लोक-17 / Gita Chapter-16 Verse-17

प्रसंग-


पंद्रहवें श्लोंक में भगवान् ने कहा था कि वे लोग 'यज्ञ करूँगा' ऐसा कहते हैं; अत: अगले श्लोक में उनके यज्ञ का स्वरूप बतलाया जाता है-


आत्मसंभाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता:

यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् ।।17।।


वे अपने-आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले घमण्डी पुरुष धन और मान के मद से युक्त होकर केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा पाखण्ड से शास्त्र विधि रहित यजन करते हैं ।।17।।

Intoxicated by wealth and honour, those self-conceited and haughty men worship God through nominal sacrifices for ostentation without following the sacred rituals. (17)


ते = वे ; आत्मसंभाविता: = अपने आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले ; स्तब्धा: = घमण्डी पुरुष ; धनमानमदान्विता: = धन और मानके मदसे युक्त हुए ; अविधिपूर्वकम् = शास्त्रविधि से रहित ; नामयज्ञै: = केवल नाममा़त्र के यज्ञों द्वारा ; दम्भेन = पाखण्ड से ; यजन्ते = यजन करते हैं ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • गीता अध्याय-Gita Chapters
    • गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
    • गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
    • गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
    • गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
    • गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
    • गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
    • गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
    • गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
    • गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
    • गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
    • गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
    • गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
    • गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
    • गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
    • गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

</sidebar>