"गीता 16:8" के अवतरणों में अंतर

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११:२५, १३ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-16 श्लोक-8 / Gita Chapter-16 Verse-8

प्रसंग-


आसुर-स्वभाव वालों में विवेक, शौच और सदाचार आदि का अभाव बतलाकर अब उनके नास्तिक भाव का वर्णन करते हैं-


असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् ।

अपरस्परसंभूतं किमन्यत्कामहैतुकम् ।।8।।


वे आसुरी- प्रकृति वाले मनुष्य कहा करते हैं कि जगत् आश्रय रहित, सर्वथा असत्य और बिना ईश्वर के, अपने-आप केवल स्त्री पुरूष के संयोग से उत्पत्र है, अतएव केवल काम ही इसका कारण है । इसके सिवा और क्या है ? ।।8।।

Men possessing a demoniac disposition say this world is without any foundation, absolutely unreal and godless, brought forth by mutual union of the male and female and hence conceived in lust; what else than this? (8)


ते = वे आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य ; आहु: = कहते हैं (कि) ; जगत् = जगत् ; अप्रतिष्ठम् = आश्रयरहित (और) ; असत्यम् = सर्वथा झूठा (एवं) ; अनीश्र्वरम् = बिना ईश्र्वर के ; अपरस्परसंभूतम् = अपने आप स्त्री पुरूष के संयोग से उत्पन्न हुआ है ; (अत:) = इसलिये ; कामहैतुकम् = केवल भोगों को भोगने के लिये ; (एव) = ही (है) ; अन्यत् = इसके सिवाय और ; किम् = क्या है ;


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