"गीता 1:33-34" के अवतरणों में अंतर
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− | हमें जिनके लिये राज्य, भोग और सुखादि अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग कर युद्ध में खड़े हैं । | + | हमें जिनके लिये राज्य, भोग और सुखादि अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग कर युद्ध में खड़े हैं । गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी सम्बन्धी लोग हैं ।।33-34।। |
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न: = हमें; येषाम् = जिनके; अर्थे = लिये; राज्यम् =राज्य; भोगा: = भोग; सुखानि = सुखादिक; काडितम् = इच्छित हैं; ते = वे (ही); इमे = यह सब; धनानि = धन; च = और; प्राणान् = जीवन (की आशा) को; त्यक्त्वा =त्यागकर; युद्वे = युद्व में; अवस्थिता: = खड़े हैं | न: = हमें; येषाम् = जिनके; अर्थे = लिये; राज्यम् =राज्य; भोगा: = भोग; सुखानि = सुखादिक; काडितम् = इच्छित हैं; ते = वे (ही); इमे = यह सब; धनानि = धन; च = और; प्राणान् = जीवन (की आशा) को; त्यक्त्वा =त्यागकर; युद्वे = युद्व में; अवस्थिता: = खड़े हैं | ||
− | आचार्या: = | + | आचार्या: = गुरुजन; पितर: = ताऊ चाचे; पुत्रा: = लड़के; च = और; तथा = वैसे; पितामहा: = दादा; मातुला: = मामा; श्वशुरा: = ससुर; पौत्रा: =पोते; श्याला: =साले; सम्बन्धिन: =सम्बन्धी लोग हैं |
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१२:५२, १४ फ़रवरी २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-33,34 / Gita Chapter-1 Verse-33,34
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