"गीता 1:35" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
(नया पृष्ठ: {{subst: गीता }})
 
पंक्ति ३: पंक्ति ३:
 
<tr>
 
<tr>
 
<td>
 
<td>
==गीता अध्याय-श्लोक-X / Gita Chapter-X Verse-X==  
+
==गीता अध्याय-1 श्लोक-35 / Gita Chapter-1 Verse-35==  
 
{| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;"
 
{| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;"
 
|-
 
|-
पंक्ति ९: पंक्ति ९:
 
'''प्रसंग-'''
 
'''प्रसंग-'''
 
----
 
----
हिन्दी टॅक्स्ट
+
यहाँ यदि यह पूछा जाय कि आप त्रिलोकी के राज्य के लिये भी उनको मारना क्यों नही चाहते, तो इस पर अर्जुन अपने सम्बन्धियों को मारने में लाभ का अभाव और पाप की संभावना बतलाकर अपनी बात को पुष्ट करते हैं-
 
----
 
----
 
<div align="center">
 
<div align="center">
'''श्लोक'''
+
'''एतात्र हन्तुमिच्छामि घ्नतोडपि मधुसूदन ।'''<br />
 +
'''अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते ।।35।।'''
 
</div>
 
</div>
 
----
 
----
पंक्ति २१: पंक्ति २२:
 
|-
 
|-
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
'''शीर्षक'''
+
हे मधुसूदन ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मै। इन सबको मारना नहीं चाहता; फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ? ।।35।।
----
 
हिन्दी टॅक्स्ट
 
  
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
'''Heading'''
+
TO slayer of madhu, I do not want to kill them, though they should slay me, even for the throne of the three worlds; how much the less form eathly lordship !  (35)
----
 
English text.
 
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति ३५: पंक्ति ३२:
 
|-
 
|-
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
यहाँ संस्कृत शब्दों के अर्थ डालें
+
ध्रत: = मारने पर; त्रैलोक्यराज्यस्य = तीन लोक के राज्य के; हेतो: = लिये; एतान् =इन सबको; हन्तुम् =मारना; इच्छामि = चाहता (फिर); महीकृते = पृथिवी के लिये (तो ); नु किम् = कहना ही क्या है
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति ४२: पंक्ति ३९:
 
</table>
 
</table>
 
<br />
 
<br />
<div align="center" style="font-size:120%;">'''<= पीछे Prev | आगे Next =>'''</div>   
+
<div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 1:33-34|<= पीछे Prev]] | [[गीता 1:35|आगे Next =>]]'''</div>   
 
<br />
 
<br />
 
{{गीता अध्याय 1}}
 
{{गीता अध्याय 1}}
 
{{गीता अध्याय}}
 
{{गीता अध्याय}}
 +
[[category:गीता]]

०८:०६, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-1 श्लोक-35 / Gita Chapter-1 Verse-35

प्रसंग-


यहाँ यदि यह पूछा जाय कि आप त्रिलोकी के राज्य के लिये भी उनको मारना क्यों नही चाहते, तो इस पर अर्जुन अपने सम्बन्धियों को मारने में लाभ का अभाव और पाप की संभावना बतलाकर अपनी बात को पुष्ट करते हैं-


एतात्र हन्तुमिच्छामि घ्नतोडपि मधुसूदन ।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते ।।35।।



हे मधुसूदन ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मै। इन सबको मारना नहीं चाहता; फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ? ।।35।।

TO slayer of madhu, I do not want to kill them, though they should slay me, even for the throne of the three worlds; how much the less form eathly lordship ! (35)


ध्रत: = मारने पर; त्रैलोक्यराज्यस्य = तीन लोक के राज्य के; हेतो: = लिये; एतान् =इन सबको; हन्तुम् =मारना; इच्छामि = चाहता (फिर); महीकृते = पृथिवी के लिये (तो ); नु किम् = कहना ही क्या है


<= पीछे Prev | आगे Next =>


अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • गीता अध्याय-Gita Chapters
    • गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
    • गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
    • गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
    • गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
    • गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
    • गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
    • गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
    • गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
    • गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
    • गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
    • गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
    • गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
    • गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
    • गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
    • गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

</sidebar>