"गीता 1:37" के अवतरणों में अंतर

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यहाँ यह पश्न हो सकता है कि कुटुम्ब-नाश से होने वाला दोष तो दोनों के लिय समान ही है; फिर यदि इस दोष पर विचार करके दुर्योधन युद्ध से नहीं हटतेख् तब तुम ही इतना विचार क्यों करते हो ? अर्जुन दो श्लोकों में इस प्रश्न का उत्तर देते हैं-
 
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'''श्लोक'''
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'''तस्मात्रार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्द्रान् स्वबान्धवान् ।'''<br />
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'''स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिन: स्याम माधव ।।37।।'''
 
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'''शीर्षक'''
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अतएव हे माधव ! अपने ही बान्धव धृतराष्द्र के पुत्रों को मारने के लिये हम योग्य नहीं हैं; क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे ? ।।37।।
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'''Heading'''
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Therefore, krsna, it does not behove us to kill our relations, the sons of dhritarastra. For how can we be happy after killing our own kinsmen ? (37)
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यहाँ संस्कृत शब्दों के अर्थ डालें
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तस्मात् = इससे; माधव =हे माधव; स्वबान्धवान् = अपने बान्धव; धार्तराष्ट्रान् =धृतराष्ट्र के पुत्रों को; हन्तुम् = मारने के लिये; वयम् = हम; न अर्हा: = योग्य नहीं हैं;हि =क्योंकि; स्वजनम् =  अपने कुटुम्बको; हत्वा = मारकर(हम); कथम् = कैसे; सुखिन: = सुखी; स्याम = होंगे।
 
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०८:१६, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण

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गीता अध्याय-1 श्लोक-36 / Gita Chapter-1 Verse-37

प्रसंग-


यहाँ यह पश्न हो सकता है कि कुटुम्ब-नाश से होने वाला दोष तो दोनों के लिय समान ही है; फिर यदि इस दोष पर विचार करके दुर्योधन युद्ध से नहीं हटतेख् तब तुम ही इतना विचार क्यों करते हो ? अर्जुन दो श्लोकों में इस प्रश्न का उत्तर देते हैं-


तस्मात्रार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्द्रान् स्वबान्धवान् ।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिन: स्याम माधव ।।37।।



अतएव हे माधव ! अपने ही बान्धव धृतराष्द्र के पुत्रों को मारने के लिये हम योग्य नहीं हैं; क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे ? ।।37।।

Therefore, krsna, it does not behove us to kill our relations, the sons of dhritarastra. For how can we be happy after killing our own kinsmen ? (37)


तस्मात् = इससे; माधव =हे माधव; स्वबान्धवान् = अपने बान्धव; धार्तराष्ट्रान् =धृतराष्ट्र के पुत्रों को; हन्तुम् = मारने के लिये; वयम् = हम; न अर्हा: = योग्य नहीं हैं;हि =क्योंकि; स्वजनम् = अपने कुटुम्बको; हत्वा = मारकर(हम); कथम् = कैसे; सुखिन: = सुखी; स्याम = होंगे।


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अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

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    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
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