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०४:२७, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-45 / Gita Chapter-1 Verse-45
प्रसंग-
इस प्रकार पश्चाताप करने के बाद अब अर्जुन अपना निर्णय सुनाते हैं-
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् ।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यता: ।।45।।
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हा ! शोक ! हम लोग बुद्धिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उद्यत हो गये हैं ।।45।।
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Oh what a pity ! though possessed of intelligence we have set our mind on the commission of a great sin in that due to lust for throne and enjoyment we are intent on killing own kinsmen. (45)
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बत = शोक है (कि); वयम् = हम लोग (बुद्धिमान् होकर भी); महत्पापम् = महान् पाप; कर्तुम् = करने को; व्यवसिता: = तैयार हुए हैं; यत् = जो कि; राज्यसुखलोभेन =राज्य और सुख के लोभ से; स्वजनम् = अपने कुल को; हन्तुम् = मारने के लिये; उद्यता: = उद्यत हुए हैं
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