"गीता 6:1" के अवतरणों में अंतर
(पृष्ठ को '{{subst:गीता}}' से बदल रहा है।) |
|||
पंक्ति ३: | पंक्ति ३: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
− | ==गीता अध्याय- | + | ==गीता अध्याय-6 श्लोक-1 / Gita Chapter-6 Verse-1== |
{| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;" | {| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;" | ||
|- | |- | ||
| valign="top" | | | valign="top" | | ||
+ | '''षष्ठोऽध्याय: प्रसंग-''' | ||
+ | |||
+ | अब ध्यान योग का अंगों सहित विस्तृत वर्णन करने के लिये छठे अध्याय का आरम्भ करते हैं और सबसे पहले अर्जुन को भक्ति कर्मयोग में प्रवृत करने के उद्देश्य से कर्मयोग की प्रशंसा करते हुए ही प्रकरण का आरम्भ करते हैं- | ||
+ | 'कर्मयोग' और 'सांख्ययोग'- इन दोनों ही साधनों में उपयोगी होने के कारण इस छठे अध्याय में ध्यान योग का भलीभाँति वर्णन किया गया है । ध्यान योग में शरीर, इन्द्रिय, मन और बुद्धि का संयम करना परम आवश्यक है । तथा शरीर, इन्द्रिय, मन और बुद्धि- इन सबको 'आत्मा' के नाम से कहा जाता है और इस अध्याय में इन्हीं के संयम का विशेष वर्णन है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'आत्म संयम योग' रखा गया है । | ||
+ | |||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
+ | पहले श्लोक में भगवान् ने कर्म फल का आश्रय न लेकर कर्म करने वाले को संन्यासी और योगी बतलाया । उस पर यह शंका हो सकती है कि यदि 'संन्यास' और 'योग' दोनों भित्र-भित्र स्थिति हैं तो उपर्युक्त साधक दोनों से सम्पत्र कैसे हो सकता हैं ? अत: इस शंका का निराकरण करने के लिये दूसरे श्लोक में 'संन्यास' और 'योग' की एकता का प्रतिपादन करते हैं- | ||
---- | ---- | ||
हिन्दी टॅक्स्ट | हिन्दी टॅक्स्ट | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
− | ''' | + | '''अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य: ।'''<br/> |
+ | '''स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ।।1।।''' | ||
</div> | </div> | ||
---- | ---- | ||
पंक्ति २१: | पंक्ति २८: | ||
|- | |- | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | ''' | + | '''श्रीभगवान् बोले-''' |
---- | ---- | ||
− | + | जो पुरूष कर्म फल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है; और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है ।।1।। | |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | ''' | + | '''Sri Bhagavan said:''' |
---- | ---- | ||
− | + | he who does his duty without expecting the fruit of actions is a samnyasi (sankhyayogi) and a yogi (karmayogi) both.He is no samnyasi (renouncer) who has merely renounced the sacred fire; even so he is no Yogi, who has merely given up all activity. (1) | |
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति ३५: | पंक्ति ४२: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
− | + | य: = जो पुरूष; कर्मफलम् = कर्म के फल को; अनाश्रित: = न चाहता हुआ; कार्यम् = करने योग्य; करोति = करता है; स: = वह; च = और(केवल); निरग्नि: = अग्नि को त्यागवाला; (संन्यासी योगी); न = नहीं हैं; अक्रिय: = क्रियाओं को त्यागने वाला; (भी संन्यासी योगी); | |
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति ४२: | पंक्ति ४९: | ||
</table> | </table> | ||
<br /> | <br /> | ||
− | <div align="center" style="font-size:120%;">'''<= पीछे Prev | आगे Next =>'''</div> | + | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 5:29|<= पीछे Prev |गीता 6:2 आगे Next =>]]'''</div> |
<br /> | <br /> | ||
{{गीता अध्याय 1}} | {{गीता अध्याय 1}} | ||
{{गीता अध्याय}} | {{गीता अध्याय}} | ||
[[category:गीता]] | [[category:गीता]] |
०६:१९, १० अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-1 / Gita Chapter-6 Verse-1
|
अध्याय एक श्लोक संख्या Verses- Chapter-1 |
1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 |
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>