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गीता अध्याय-7 श्लोक-13 / Gita Chapter-7 Verse-13
प्रसंग-
भगवान् ने सारे जगत् को त्रिगुणमय भावों से मोहित बतलाया । इस बात को सुनकर अर्जुन को यह जानने की इच्छा हुई कि फिर इससे छूटने का कोई उपाय है या नहीं ? अन्तर्यामी दयामय भगवान् इस बात को समझकर अब अपनी माया को दुस्तर बतलाते हुए उसे तरने का उपाय सूचित कर रहे हैं-
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभि: सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्य: परमव्ययम् ।।13।।
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गुणों के कार्यरूप सात्विक, राजस और तामस –इन तीनों प्रकार के भावों से यह सब संसार- प्राणि समुदाय मोहित हो रहा है, इसीलिये इन तीनों गुणों से परे मुझ अविनाशी को नहीं जानता ।।13।।
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The shole of this creation is deluded by these objects evolved from the three modes of prakrti-sattva, rajas and tamas; that is why the world fails to recognize Me, standing apart from these and impersihable. (13)
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गुणमयै: = गुणों के कार्यरूप (सात्वकि, राजस और तामस); एभि: = इन; त्रिभि: = तीनों प्रकार के; भावै: =भावों से; इदम् =यह; सर्वम् = सब; जगत् = संसार; मोहितम् = मोहित हो रहा है(इसलिये); एभ्य: = इन तीनों गुणों से; परम् = परे; माम् = मुझ; अव्ययम् = अविनाशी को;न अभिजानाति = तत्व से नहीं जानता
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