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गीता अध्याय-7 श्लोक-14 / Gita Chapter-7 Verse-14
प्रसंग-
भगवान् ने माया की दुस्तरता दिखलाकर अपने भजन को उससे तरने का उपाय बतलाया । इस पर यह प्रश्न उठता है कि जब ऐसी बात है तब सब लोग निरन्तर आपका भजन क्यों नही करते ? इस पर भगवान् कहते हैं-
दैवी ह्रोषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ।।14।।
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क्योंकि यह अलौकिक अर्थात् अति अद्भुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है; परंतु जो पुरूष केवल मुझको ही निरन्तर भजते हैं वे इस माया का उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् संसार से तर जाते हैं ।।14।।
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For this most wonderful maya veil of mine, consisting of the three gunas modes of nature, is extremely difficult to break through; those, however, who constantly adore me alone are able to cross it. . (14)
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हि = क्योंकि; एषा = यह; दैवी = अलौकिक अर्थात् अति अद्भुत; गुणमयी = त्रिगुणमयी; मम = मेरी; माया = योगमाया; दुरत्यया = बड़ी दुस्तर है (परन्तु); ये = जो पुरूष; माम् = मेरे कों; एव = ही प्रपद्यन्ते = निरन्तर भजते हैं; ते = वे; एताम् = इस; मायाम् = माया को; तरन्ति = उल्लंघन कर जातें हैं अर्थात् संसार से तर जाते हैं
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