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*[[दीपावली]] से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यमराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा का सम्पादन करता है। ये निर्णेता हम से सदा शुभकर्म की आशा करते हैं।  
 
*[[दीपावली]] से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यमराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा का सम्पादन करता है। ये निर्णेता हम से सदा शुभकर्म की आशा करते हैं।  
 
*दण्ड के द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है।   
 
*दण्ड के द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है।   
 
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०९:३६, २९ अगस्त २०१० के समय का अवतरण

यमराज / Yamraj

  • विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य के पुत्र यमराज, श्राद्धदेव मनु और यमुना हुईं।
  • यमराज परम भागवत, द्वादश भागवताचार्यों में हैं।
  • यमराज जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं।
  • दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिये, जो अशुभकर्मा है, बड़ी भयप्रद है।
  • यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त- इन चतुर्दश नामों से इन महिषवाहन दण्डधर की आराधना होती है।
  • इन्हीं नामों से इनका तर्पण किया जाता है।
  • चार द्वारों, सात तोरणों तथा पुष्पोदका, वैवस्वती आदि सुरम्य नदियों से पूर्ण अपनी पुरी में पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर के द्वार से प्रविष्ट होने वाले पुण्यात्मा पुरुषों को यमराज शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी, चतुर्भुज, नीलाभ भगवान विष्णु के रूप में अपने महाप्रासाद में रत्नासन पर दर्शन देते हैं।
  • दक्षिण-द्वार से प्रवेश करने वाले पापियों को वह तप्त लौहद्वार तथा पूय, शोणित एवं क्रूर पशुओं से पूर्ण वैतरणी नदी पार करने पर प्राप्त होते हैं। द्वार से भीतर आने पर वे अत्यन्त विस्तीर्ण सरोवरों के समान नेत्रवाले, धूम्रवर्ण, प्रलय-मेघ के समान गर्जन करनेवाले, ज्वालामय रोमधारी, बड़े तीक्ष्ण प्रज्वलित दन्तयुक्त, सँडसी-जैसे नखोंवाले, चर्मवस्त्रधारी, कुटिल-भृकुटि भयंकरतम वेश में यमराज को देखते हैं। वहाँ मूर्तिमान व्याधियाँ, घोरतर पशु तथा यमदूत उपस्थित मिलते हैं।
  • दीपावली से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यमराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा का सम्पादन करता है। ये निर्णेता हम से सदा शुभकर्म की आशा करते हैं।
  • दण्ड के द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है।

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