"गीता 14:27" के अवतरणों में अंतर

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१९:१३, १२ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-14 श्लोक-27 / Gita Chapter-14 Verse-27

प्रसंग-


फल में विषमता की शंका का निराकरण करने के लिये सबकी एकता का प्रतिपादन करते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं-


ब्रह्राणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च ।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तकिस्य च ।।27।।



क्योंकि उस अविनाशी पर ब्रह्मा का और अमृत का तथा नित्य धर्म का और अखण्ड एकरस आनन्द का आश्रय मैं हूँ इसलिए इनका मैं परम आश्रय हूँ ।।27।।

For, I am the ground of the imperishable Brahma, of immortality, of the eternal virtue and of unending immutable bliss. (27)


अव्ययस्य = अविनाशी ; ब्रह्मण: = परबह्मका ; च = और ; अमृतस्य = अमृत का ; च = तथा ; शाश्र्वतस्य = नित्य ; धर्मस्य = धर्म का ; च = और ; ऐकान्तकिस्य = अखण्ड एकरस ; सुखस्य = आनन्द का ; अहम् = मैं ; हि = हि ; प्रतिष्ठा = आश्रय हूं


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अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

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