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१२:२१, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-14 श्लोक-2 / Gita Chapter-14 Verse-2
इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागता: ।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ।।2।।
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इस ज्ञान को आश्रय करके अर्थात् धारण करके मेरे स्वरूप को प्राप्त हुए पुरुष सृष्टि के आदि में पुन: उत्पन्न नहीं होते और प्रलयकाल में भी व्याकुल नहीं होते ।।2।।
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Those who, by practicing this wisdom, have entered into my being are not born again at the cosmic dawn nor feel distrurbed even during the cosmic night. (2)
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इदम् = इस ; ज्ञानम् = ज्ञानको ; उपाश्रित्य = आश्रम करके अर्थात् धारण करके ; मम = मेरे ; साधर्म्यम् = स्वरूप को ; आगता: = प्राप्त हुए पुरुष ; सर्गें = सृष्टि के आदिमें (पुन:) ; न उपजायन्ते = उत्पन्न नहीं होते है ; च = और ; प्रलये = प्रलय काल में ; अपि = भी ; न व्यथन्ति = व्याकुल नहीं होते हैं
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