"गोकर्णेश्वर महादेव" के अवतरणों में अंतर

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==वास्तु==
 
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यह मन्दिर मथुरा नगरोपान्त में स्थित है । इसके कमरों से घिरे हुए आंगन के ऊपर अष्टकोण गुम्बदीय छत है । इस आंगन में एक तुलसी (भारत में इस पौधे को ‘तुलसी माँ’ कहा जाता है व इसे पूजा जाता है) का पौधा भी है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने का इस्तेमाल किया गया है । उत्कीर्णित जंगले, मुख्य द्वार पर की गई पच्चीकारी, पत्थर से बनीं कमल-पत्तियाँ व गुम्बद पर समर्पित पलस्तर इसके मुख्य आकर्षण हैं ।
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यह मन्दिर मथुरा नगरोपान्त में स्थित है। इसके कमरों से घिरे हुए आंगन के ऊपर अष्टकोण गुम्बदीय छत है। इस आंगन में एक तुलसी (भारत में इस पौधे को ‘तुलसी माँ’ कहा जाता है व इसे पूजा जाता है) का पौधा भी है। इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने का इस्तेमाल किया गया है। उत्कीर्णित जंगले, मुख्य द्वार पर की गई पच्चीकारी, पत्थर से बनीं कमल-पत्तियाँ व गुम्बद पर समर्पित पलस्तर इसके मुख्य आकर्षण हैं।
 
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१२:४५, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण

स्थानीय सूचना
गोकर्णेश्वर महादेव

Gokaran-Nath-Mahadeva-Mathura-2.jpg
मार्ग स्थिति: यह मन्दिर मथुरा - वृन्दावन आकाशवाणी केन्द्र के पीछे, मथुरा मे स्थित है।
आस-पास: गायत्री तपोभूमि, प्रेम महाविधालय, मेथोडिस्ट हस्पताल, चामुण्डा देवी मन्दिर, बिरला मंदिर
पुरातत्व: निर्माणकाल- उन्नीसवीं शताब्दी
वास्तु:
स्वामित्व:
प्रबन्धन:
स्त्रोत: इंटैक
अन्य लिंक:
अन्य:
सावधानियाँ:
मानचित्र:
अद्यतन: 2009

गोकर्णेश्वर महादेव मन्दिर / Gokarneshwar Mahadev Temple

मथुरा में यह मन्दिर एक टीले पर बना है, जिसे गोकर्णेश्वर अथवा कैलाश कहते हैं। यह मथुरा का अत्यन्त प्राचीन स्थान है। गोकर्णेश्वर महादेव को उत्तरी सीमा का रक्षक क्षेत्रपाल माना जाता है। मथुरा उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक ज़िला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। मथुरा के चारों ओर चार शिव मंदिर हैं- पश्चिम में भूतेश्वर का, पूर्व में पिघलेश्वर का, दक्षिण में रंगेश्वर महादेव का और उत्तर में गोकर्णेश्वर का। चारों दिशाओं में स्थित होने के कारण शिवजी को मथुरा का कोतवाल कहते हैं। यह मन्दिर भगवान गोकरनाथ को समर्पित किया गया है जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ‘गोकर्ण’ अर्थात गाय के कान से जन्म लिया था।

वास्तु

गोकर्णेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
Gokarneshwr Mahadev Temple, Mathura

यह मन्दिर मथुरा नगरोपान्त में स्थित है। इसके कमरों से घिरे हुए आंगन के ऊपर अष्टकोण गुम्बदीय छत है। इस आंगन में एक तुलसी (भारत में इस पौधे को ‘तुलसी माँ’ कहा जाता है व इसे पूजा जाता है) का पौधा भी है। इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने का इस्तेमाल किया गया है। उत्कीर्णित जंगले, मुख्य द्वार पर की गई पच्चीकारी, पत्थर से बनीं कमल-पत्तियाँ व गुम्बद पर समर्पित पलस्तर इसके मुख्य आकर्षण हैं।

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