"राधारमण जी मन्दिर" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - '[[category' to '[[Category')
छो (Text replace - '{{Vrindavan temple}}' to '==सम्बंधित लिंक== {{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}')
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति ३: पंक्ति ३:
 
==राधा रमण जी का मन्दिर / [[:en:Radha Raman Temple|Radha Raman Temple]]==
 
==राधा रमण जी का मन्दिर / [[:en:Radha Raman Temple|Radha Raman Temple]]==
 
[[चित्र:Radha-Raman-Temple-1.jpg|राधारमण जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Radha Raman Temple, Vrindavan|thumb|200px]]
 
[[चित्र:Radha-Raman-Temple-1.jpg|राधारमण जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Radha Raman Temple, Vrindavan|thumb|200px]]
*[[वृन्दावन]] के इस प्रसिद्ध मन्दिर में श्री गोपाल भक्त गोस्वामी जी के उपास्य ठाकुर हैं। यहां श्री राधारमण जी, ललित त्रिभंगी मूर्ति के दर्शन हैं। 1599 विक्रम संवत वैशाख शुक्ला पूर्णिमा की बेला में शालिगराम से श्री गोपालभट्ट प्रेम वशीभूत हो [[ब्रज]] निधि श्री राधारमण विग्रह के रूप में अवतरित हुए।
+
*[[वृन्दावन]] के इस प्रसिद्ध मन्दिर में श्री गोपाल भक्त गोस्वामी जी के उपास्य ठाकुर हैं। यहाँ श्री राधारमण जी, ललित त्रिभंगी मूर्ति के दर्शन हैं। 1599 विक्रम संवत वैशाख शुक्ला पूर्णिमा की बेला में शालिगराम से श्री गोपालभट्ट प्रेम वशीभूत हो [[ब्रज]] निधि श्री राधारमण विग्रह के रूप में अवतरित हुए।
 
*यह श्रीमन महाप्रभु के कृपापात्र श्री गोपालभट्ट जी के द्वारा सेवित विग्रह है। श्रीभट्टगोस्वामी पहले एक शालग्राम शिला की सेवा करते थे।  एक समय उनकी यह प्रबल अभिलाषा हुई कि यदि शालग्राम ठाकुर जी के हस्त-पद होते तो मैं उनकी विविध प्रकार से अलंकृत कर सेवा करता, उन्हीं झूले पर झुलाता।  भक्तवत्सल प्रभु अपने भक्त की मनोकामना पूर्ण करने के लिए उसी रात में ही ललितत्रिभंग श्री राधारमण रूप में परिवर्तित हो गये।  भक्त की इच्छा पूर्ण हुई।  भट्ट गोस्वामी ने नानाविध अलंकारों से भूषितकर उन्हें झूले में झुलाया तथा बड़े लाड़-प्यार से उन्हें भोगराग अर्पित किया।   
 
*यह श्रीमन महाप्रभु के कृपापात्र श्री गोपालभट्ट जी के द्वारा सेवित विग्रह है। श्रीभट्टगोस्वामी पहले एक शालग्राम शिला की सेवा करते थे।  एक समय उनकी यह प्रबल अभिलाषा हुई कि यदि शालग्राम ठाकुर जी के हस्त-पद होते तो मैं उनकी विविध प्रकार से अलंकृत कर सेवा करता, उन्हीं झूले पर झुलाता।  भक्तवत्सल प्रभु अपने भक्त की मनोकामना पूर्ण करने के लिए उसी रात में ही ललितत्रिभंग श्री राधारमण रूप में परिवर्तित हो गये।  भक्त की इच्छा पूर्ण हुई।  भट्ट गोस्वामी ने नानाविध अलंकारों से भूषितकर उन्हें झूले में झुलाया तथा बड़े लाड़-प्यार से उन्हें भोगराग अर्पित किया।   
 
*श्रीराधारमण विग्रह की पीठ शालग्राम शिला जैसी दीखती है। अर्थात पीछे से दर्शन करने में शालग्राम शिला जैसे ही लगते हैं।  
 
*श्रीराधारमण विग्रह की पीठ शालग्राम शिला जैसी दीखती है। अर्थात पीछे से दर्शन करने में शालग्राम शिला जैसे ही लगते हैं।  
पंक्ति १६: पंक्ति १६:
  
 
<br />
 
<br />
{{Vrindavan temple}}
+
==सम्बंधित लिंक==
 +
{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}
 
[[en:Radha Raman Temple]]
 
[[en:Radha Raman Temple]]
 
[[Category:दर्शनीय-स्थल]]
 
[[Category:दर्शनीय-स्थल]]

११:१२, ५ जुलाई २०१० के समय का अवतरण

राधा रमण जी का मन्दिर / Radha Raman Temple

राधारमण जी मन्दिर, वृन्दावन
Radha Raman Temple, Vrindavan
  • वृन्दावन के इस प्रसिद्ध मन्दिर में श्री गोपाल भक्त गोस्वामी जी के उपास्य ठाकुर हैं। यहाँ श्री राधारमण जी, ललित त्रिभंगी मूर्ति के दर्शन हैं। 1599 विक्रम संवत वैशाख शुक्ला पूर्णिमा की बेला में शालिगराम से श्री गोपालभट्ट प्रेम वशीभूत हो ब्रज निधि श्री राधारमण विग्रह के रूप में अवतरित हुए।
  • यह श्रीमन महाप्रभु के कृपापात्र श्री गोपालभट्ट जी के द्वारा सेवित विग्रह है। श्रीभट्टगोस्वामी पहले एक शालग्राम शिला की सेवा करते थे। एक समय उनकी यह प्रबल अभिलाषा हुई कि यदि शालग्राम ठाकुर जी के हस्त-पद होते तो मैं उनकी विविध प्रकार से अलंकृत कर सेवा करता, उन्हीं झूले पर झुलाता। भक्तवत्सल प्रभु अपने भक्त की मनोकामना पूर्ण करने के लिए उसी रात में ही ललितत्रिभंग श्री राधारमण रूप में परिवर्तित हो गये। भक्त की इच्छा पूर्ण हुई। भट्ट गोस्वामी ने नानाविध अलंकारों से भूषितकर उन्हें झूले में झुलाया तथा बड़े लाड़-प्यार से उन्हें भोगराग अर्पित किया।
  • श्रीराधारमण विग्रह की पीठ शालग्राम शिला जैसी दीखती है। अर्थात पीछे से दर्शन करने में शालग्राम शिला जैसे ही लगते हैं।
  • द्वादश अंगुल का श्रीविग्रह होने पर भी बड़ा ही मनोहर दर्शन है।
  • श्रीराधारमण विग्रह का श्री मुखारविन्द गोविन्द जी के समान, वक्षस्थल श्री गोपीनाथ के समान तथा चरणकमल मदनमोहन जी के समान हैं। इनके दर्शनों से तीनों विग्रहों के दर्शन का फल प्राप्त होता है।
  • सेवाप्राकट्य ग्रन्थ के अनुसार सम्वत 1599 में शालग्राम शिला से राधारमण जी प्रकट हुए।
  • उसी वर्ष वैशाख की पूर्णिमा तिथि में उनका अभिषेक हुआ था।
  • राधारमणजी के साथ श्रीराधाजी का विग्रह नहीं है। परन्तु उनके वाम भाग में सिंहासन पर गोमती चक्र की पूजा होती है।
  • श्रीहरिभक्तिविलास में गोमतीचक्र के साथ ही शालग्राम शिला के पूजन की विधि दी गई है।
  • श्रीराधारमण मन्दिर के पास ही दक्षिण में श्रीगोपालभट्टगोस्वामी की समाधि तथा राधारमण के प्रकट होने का स्थान दर्शनीय है।
  • अन्य विग्रहों की भाँति श्री राधारमण जी वृन्दावन से कहीं बाहर नहीं गये।


सम्बंधित लिंक