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२१:१९, ४ मार्च २०१० के समय का अवतरण

गीता अध्याय-18 श्लोक-9 / Gita Chapter-18 Verse-9

प्रसंग-


अब उत्तम श्रेणी के सात्त्विक त्याग के लक्षण बतलाये जाते है-


कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन ।
संगं त्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्त्विको मत: ।।9।।



हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! जो शास्त्रविहित कर्म करना कर्तव्य है- इसी भाव से आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है – वही सात्त्विक त्याग माना गया है ।।9।।

A prescribed duty which is performed simply because it has to be performed, giving up attachment and fruit, that alone has been recognized as the Sattvika form of renunciation. (9)


अर्जुन = हे अर्जुन ; कार्यम् = करना कर्तव्य है ; इति = ऐसे (समझकर) ; एव = ही ; यत् = जो ; नियतम् = शास्त्रविधि से नियत किया हुआ कर्तव्य ; कर्म = कर्म ; सग्डम् = आसक्ति को ; च = और ; फलम् = फलको ; त्यक्त्वा = त्याग कर ; क्रियते = किया जाता है ; स: = वह ; एव = ही ; सात्त्विक: = सात्त्विक ; त्याग: = त्याग ; मत: = माना गया है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

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