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गीता अध्याय-18 श्लोक-41 / Gita Chapter-18 Verse-41
प्रसंग-
अब संक्षेप में नियत कर्मों को स्वरूप, त्याग के नाम से वर्णित कर्मयोग में भक्ति का सहयोग और उसका फल परम सिद्धि की प्राप्ति बतलाने के लिये पुन: उसी त्याग रूप कर्मयोग का प्रकरण आरम्भ करते हुए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के स्वाभाविक नियत कर्म बतलाने की प्रस्तावना करते हैं-
ब्राह्राणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणै: ।।41।।
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हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">परंतप</balloon> ! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों के द्वारा विभक्त किये गये हैं ।।41।।
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The duties of the Brahmanas, the Ksatriyas and the Vaisyas, as well as of the Sudras, have been divided according to their inborn qualities, Arjuna. (41)
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परंतप = हे परंतप ; ब्राह्मणक्षत्रियविशाम् = ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यों के ; च = तथा ; सूद्राणाम् = शूद्रों के (भी) ; कर्माणि = कर्म ; स्वभावप्रभवै: = स्वभाव से उत्पन्न हुए ; गुणै: = गुणों करके ; प्रविभक्तानि = विभक्त किये गये है ;
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