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०७:४३, १९ मार्च २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-16 / Gita Chapter-17 Verse-16
प्रसंग-
अब मन संबंधी तप का स्वरूप बतलाते हैं-
मन:प्रसाद: सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रह: ।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ।।16।।
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मन की प्रसन्नता, शान्त भाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का निग्रह और अन्त:करण के भावों की भली-भाँति पवित्रता, इस प्रकार यह मनसंबंधी तप कहा जाता है ।।16।।
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Cheerfulness of mind, placidity, habit of contemplation on God, control of mind and perfect purity of inner feeling- all this is called austerity of the mind. (16)
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मन:प्रसाद: = मन की प्रसन्नता (और) ; सौम्यत्वम् = शान्तभाव (एवं) ; मौनम् = भगवत्-चिन्तन करने का स्वभाव ; आत्मविनिग्रह: = मन का निग्रह ; भावसंशुद्धि: = अन्त:करण की पवित्रता ; इति = ऐसे ; एतत् = यह ; मानसम् = सनसम्बन्धी ; तप: = तप ; उच्यते = कहा जाता है
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