ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
|
|
पंक्ति २१: |
पंक्ति २१: |
| | | |
| | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| |
− | Speedily be becomes virtuous and secures lasting peace. Know it for certain. arjuna, that my devotee never falls. (31) | + | Speedily be becomes virtuous and secures lasting peace. Know it for certain. Arjuna, that my devotee never falls. (31) |
| |- | | |- |
| |} | | |} |
०८:०४, १९ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-31 / Gita Chapter-9 Verse-31
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छार्न्ति निगच्छति ।
कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति ।।31।।
|
वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है । हे अर्जुन ! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता ।।31।।
|
Speedily be becomes virtuous and secures lasting peace. Know it for certain. Arjuna, that my devotee never falls. (31)
|
क्षिप्रम् = शीघ्र ही; भवति = हो जाता है(और); शश्वत् = सदा रहनेवाली; शान्तिम् = परमशान्ति को; निगच्छति = प्राप्त होता है; कौन्तेय = हे अर्जुन (तूं); प्रति = निश्चयपूर्वक सत्य; जानीहि = जान(कि); मे = मेरा; न प्रणश्यति = नष्ट नहीं होता ;
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|