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०७:१४, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
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गीता अध्याय-10 श्लोक-3 / Gita Chapter-10 Verse-3
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असंमूढ: स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्यते ।।3।।
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जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान् ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरूष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।।3।।
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He who know me in reality as birthless and without beginning, and as the supreme Lord of the universe, he, undeluded among men, is purged of all sins. (3)
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माम् = मेरे को; अजम् = अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित(और); अनादिम् = अनादि; लोकमहेश्वरम् = लोकों का महान् ईश्वर; वेत्ति = तत्त्व से जानता है; स: = वह; मर्त्येषु = मनुष्योंमें; असंमूढ: ज्ञानवान् = (पुरूष); सर्वपापै: = संपूर्ण पापों से प्रमुच्यते = मुक्त हो जाता है
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