"गीता 17:8" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | पूर्व | + | पूर्व श्लोक में भगवान् ने आहार, यज्ञ, तप और दान भेद सुनने की आज्ञा की है; उस के अनुसार इस श्लोक में ग्रहण करने योग्य सात्त्विक आहार का वर्णन करते हैं- |
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− | आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले, रस युक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय – ऐसे आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक | + | आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले, रस युक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय – ऐसे आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक पुरुष को प्रिय होते हैं ।।8।। |
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− | आयु: = आयु ; सत्त्व = बुद्धि ; बल = बल ; आरोग्य = आरोग्य ; सुख = सुख (और) ; प्रीति = प्रीति को ; विवर्धना: = बढाने वाले (एवं) ; रस्या: = रसयुक्त ; स्त्रिग्घा: = चिकने (और) ; स्थिरा: = स्थिर रहने वाले (तथा) ; हृद्या: = स्वभाव से ही मनको प्रिय (ऐसे) ; आहारा: = आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ (तो) ; सात्त्विकप्रिया: = सात्त्विक | + | आयु: = आयु ; सत्त्व = बुद्धि ; बल = बल ; आरोग्य = आरोग्य ; सुख = सुख (और) ; प्रीति = प्रीति को ; विवर्धना: = बढाने वाले (एवं) ; रस्या: = रसयुक्त ; स्त्रिग्घा: = चिकने (और) ; स्थिरा: = स्थिर रहने वाले (तथा) ; हृद्या: = स्वभाव से ही मनको प्रिय (ऐसे) ; आहारा: = आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ (तो) ; सात्त्विकप्रिया: = सात्त्विक पुरुष को प्रिय होते हैं |
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१२:२६, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-17 श्लोक-8 / Gita Chapter-17 Verse-8
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