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०७:१४, २९ नवम्बर २००९ का अवतरण
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गीता अध्याय-18 श्लोक-2 / Gita Chapter-18 Verse-2
प्रसंग-
इस प्रकार अर्जुन के पूछने पर भगवान् अपना निश्चय प्रकट करने के पहले संन्यास और त्याग के विषय में दो श्लोकों द्वारा अन्य विद्धानों के भिन्न-भिन्न मत बतलाते हैं-
श्रीभगवानुवाच-
काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदु: ।
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणा: ।।2।।
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श्रीभगवान् बोले-
कितने ही पण्डितजन तो काम्यकर्मों के त्याग को संन्यास समझते हैं तथा दूसरे विचार कुशल पुरुष सब कर्मों के फल के त्याग को त्याग कहते हैं ।।2।।
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Sri Bhagavan said :
Some sages understand Samnyasa as the giving up of all actions motivated by desire; and other thinkers declare that Tyaga consists in relinquishing the fruit of all actions. (2)
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कवय: = पण्डितजन (तो) ; काम्यानाम् = काम्य ; कर्मणाम् = कर्मों के ; न्यासम् = त्याग को ; संन्यासम् = संन्यास ; विदु: = जानते हैं ; (च) = और ; विचक्षणा: = विचारकुशल पुरूष ; सर्वकर्मफलत्यागम् = सब कर्मों के फलके त्याग को ; त्यागम् = त्याग ; प्राहु: = कहते हैं ;
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