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११:१७, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-18 श्लोक-32 / Gita Chapter-18 Verse-32

प्रसंग-


अब तामसी बुद्धि के लक्षण बतलाते हैं-


अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता ।
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धि: सा पार्थ तामसी ।।32।।



हे अर्जुन ! जो तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को भी 'यह धर्म है' ऐसा मान लेती है तथा इसी प्रकार अन्य सम्पूर्ण पदार्थों को भी विपरीत मान लेती है, वह बुद्धि तामसी है ।।32।।

The intellect which imagines evenAdharma to be Dharma, and sees all other things upside¬down,—wrapped in ignorance, that intellect is Tamasika, arjuna. (32)


पार्थ = हे अर्जुन ; या = जो ; तमसा = समोगुणसे ; आवृता = आवृत हुई बुद्धि ; अधर्मम् = अधर्म को ; धर्मम् = धर्म ; इति = ऐसा ; मन्यते = मानती है ; च = तथा (और भी) ; सर्वार्थान् = संपूर्ण अर्थों को ; विपरीतान् = विपरीत ही ; मन्यते = मानती है ; सा = वह ; बुद्धि: = बुद्धि ; तामसी = तामसी है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

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