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११:२२, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-49 / Gita Chapter-18 Verse-49
प्रसंग-
यहाँ उपासना के सहित विवेक और वैराग्यपूर्वक एकान्त में रहकर साधन करने की विधि और उसका फल बतलाने के लिये पुन: सांख्ययोग का प्रकरण आरम्भ करते हैं-
असक्तबुद्धि: सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृह: ।
नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति ।।49।।
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सर्वत्र आसक्ति रहित बुद्धिवाला, स्पृहारहित और जीते हुए अन्त:करण वाला पुरूष सांख्ययोग के द्वारा उस परम नैष्कर्म्यसिद्धि को प्राप्त होता है ।।49।।
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He whose intellect is unattached everywhere, whose thirst for enjoyments has altogether disappeared and who has subdued his mind, reaches through Sankhyayoga (the path of Knowledge) the consummation of actionlessness. (49)
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सर्वत्र = सर्वत्र ; असक्तबृद्धि: = आसक्तिरहित बृद्धिवाला ; विगतस्पृह: = स्पृहारहित (और) ; जितात्मा = जीते हुए अन्त:करण वाला पुरूष ; संन्यासेन = सांख्ययोग के द्वारा (भी) ; परमाम् = परम ; नैष्कर्म्यसिद्धिम् = नैष्कर्म्यसिद्धि को ; अधिगच्छति = प्राप्त होता है ;
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