"गीता 18:50" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | + | उपर्युक्त श्लोक में यह बात कही गयी कि संन्यास के द्वारा मनुष्य परम नैष्कर्म्यसिद्धि को प्राप्त होता है; इस पर यह जिज्ञासा होती है कि उस संन्यास (सांख्ययोग) का क्या स्वरूप है और उसके द्वारा मनुष्य किस क्रम से सिद्धि को प्राप्त होकर ब्रह्रा को प्राप्त होता है ? अत: इन सब बातों को बतलाने की प्रस्तावना करते हुए भगवान् [[अर्जुन]] को सुनने के लिये सावधान करते हैं- | |
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− | ''' | + | '''सिद्धिं प्राप्तों यथा ब्रह्रा तथाप्नोति निबोध में ।'''<br/> |
+ | '''समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा ।।50।।''' | ||
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− | + | जो कि ज्ञानयोग की परानिष्ठा है, उस नैष्कर्म्य सिद्धि को जिस प्रकार से प्राप्त होकर मनुष्य ब्रह्रा को प्राप्त होता है, उस प्रकार को हे कुन्ती पुत्र ! तू संक्षेप में ही मुझसे समझ ।।50।। | |
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− | + | arjuna, know from Me only briefly the process through which man having attained actionlessness, which is the highest consummation of Jnanayoga (the path of Knowledge) reaches Brahma.(50) | |
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− | + | कौन्तेय = हे कुन्तीपुत्र ; सिद्धिम् = अन्त:करण की शुद्धिरूप सिद्धि को ; प्राप्त: = प्राप्त हुआ पुरूष ; यथा = जैसे (सांख्ययोग के द्वारा); ब्रह्म = सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को ; आप्रोति = प्राप्त होता है ; तथा = तथा ; या = जो ; ज्ञानस्य = तत्त्वज्ञानकी ; परा = परा ; निष्ठा = निष्ठा है ; तत् = उसको ; एव = भी (तूं) ; मे = मेरे से ; समासेन = संक्षेप से ; निबोध = जान | |
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− | <div align="center" style="font-size:120%;">'''<= पीछे Prev | आगे Next =>'''</div> | + | <div align="center" style="font-size:120%;">''' [[18:49|<= पीछे Prev]] | [[18:51|आगे Next =>]]'''</div> |
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− | {{गीता अध्याय | + | {{गीता अध्याय 18}} |
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०६:५०, १४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-50 / Gita Chapter-18 Verse-50
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अध्याय अठारह श्लोक संख्या Verses- Chapter-18 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 |
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