ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
|
|
पंक्ति १: |
पंक्ति १: |
− | {{menu}}<br /> | + | {{menu}} |
| <table class="gita" width="100%" align="left"> | | <table class="gita" width="100%" align="left"> |
| <tr> | | <tr> |
०९:३३, ५ जनवरी २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-70 / Gita Chapter-18 Verse-70
प्रसंग-
इस प्रकार उपर्युक्त दो श्लोकों में गीताशास्त्र का श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवद्भक्तों में विस्तार करने का फल और माहात्म्य बतलाया; किन्तु सभी मनुष्य इस कार्य को नहीं कर सकते, इसका अधिकारी तो कोई विरला ही होता है । इसलिये अब गीताशास्त्र के अध्ययन का माहात्म्य बतलाते हैं
अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयो: ।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्ट: स्यामिति मे मति: ।।70।।
|
जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनों के संवाद रूप गीताशास्त्र को पढ़ेगा, उसके द्वारा भी मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊँगा- ऐसा मेरा मत है ।।70।।
|
And I declare that he who studies this sacred conversation worships Me by his intelligence.(70)
|
च = तथा (हे अर्जुन) ; य: = जो (पुरूष) ; इमम् = इस ; धर्म्यम् = धर्ममय ; आवयों: = हम दोनों के ; संवादम = संवादरूप गीताशास्त्रको ; अध्येष्यते = नित्य पाठ करेगा ; तेन = उसके द्वारा ; अहम् = मैं ; ज्ञानयज्ञेन = ज्ञानयज्ञसे ; इष्ट: = पूजित ; स्याम् = होऊंगा ; इति = ऐसा ; मे = मेरा ; मति: = मत है
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|