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११:३०, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-18 श्लोक-72 / Gita Chapter-18 Verse-72

प्रसंग-


इस प्रकार गीताशास्त्र के कथन, पठन और श्रवण का माहात्म्य बतलाकर अब भगवान् स्वयं सब कुछ जानते हुए भी अर्जुन को सचेत करने के लिये उससे स्थिति पूछते हैं-


कच्चिदेतच्छ्र तुं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा ।
कच्चिदज्ञानसंमोह:प्रनष्टस्ते धनंजय ।।72।।



हे पार्थ ! क्या इस (गीताशास्त्र) को तूने एकाग्रचित्त से श्रवण किया ? और हे धनंजय ! क्या तेरा अज्ञानजनित मोह नष्ट हो गया ? ।।72।।

Have you heard this gospel of the Gita with one-pointed mind, arjuna ? And has your delusion born of ignorance melted away, O conquerer of riches.(72)


पार्थ = हे पार्थ ; कच्चित् = क्या ; एतत् = यह (मेरा बचन) ; त्वया = तैंने ; एकाग्रेण = एकाग्र ; चेतसा = चित्तसे ; श्रुतम् = श्रवण किया (और) ; धनंजय = हे धनंजय ; कच्चित् = क्या ; ते = तेरा ; अज्ञान संमाह: = अज्ञान से उत्पन्न हुआ मोह ; प्रनष्ट: = नष्ट हुआ



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

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