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उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण जो सनातन अव्यक्त भाव है, वह परम दिव्य पुरूष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता ।।20।।
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उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण जो सनातन अव्यक्त भाव है, वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता ।।20।।
  
 
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०८:११, ३ दिसम्बर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-8 श्लोक-20 / Gita Chapter-8 Verse-20

प्रसंग-


<balloon link="index.php?title=ब्रह्मा " title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> की रात्रि के आरम्भ में जिस अव्यक्त् में समस्त भूत लीन होते हैं और दिन का आरम्भ होते ही जिससे उत्पन्न होते हैं, वही अव्यक्त सर्वश्रेष्ठ है या उससे बढ़कर कोई दूसरा और है इस जिज्ञासा पर कहते हैं-


परस्तस्मात्तु भावोऽन्यो-
ऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन: ।
य: स सर्वेषु भूतेषु
नश्यत्सु न विनश्यति ।।20।।



उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण जो सनातन अव्यक्त भाव है, वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता ।।20।।

Far beyond even this unmanifest, there is yet another unmanifest existence, that supreme divine person, who does not perish even though all beings perish. (20)


तु = परन्तु ; तस्मात् = उस ; अव्यक्तात् = उव्यक्त से भी ; य: = जो ; सनातन: = सनातन ; अव्यक्त: = अव्यक्त ; भाव: = भाव है ; स: = वह सच्चिदानन्दघन पूर्णब्रह्म परमात्मा ; पर: = अति परे ; अन्य: = दूसरा अर्थात् विलक्षण ; सर्वेषु = सब ; भूतेषु = भूतों के ; नश्यत्सु = नष्ट होने पर भी ; न = नहीं ; विनश्यति = नष्ट होता है



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

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