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०६:४४, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-8 श्लोक-27 / Gita Chapter-8 Verse-27

प्रसंग-


अब उन दोनों मार्गों को जानने वाले योगी की प्रशंसा करके अर्जुन को योगी बनने के लिये कहते हैं-


नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्राति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ।।27।।



हे पार्थ ! इस प्रकार इन दोनों मार्गों को तत्त्व से जानकर कोई भी योगी मोहित नहीं होता । इस कारण हे अर्जुन ! तू सब काल में समबुद्धि रूप योग से युक्त हो अर्थात् निरन्तर मेरी प्राप्ति के लिये साधन करने वाला हो ।।27।।

Knowing thus the secret of these two paths, O son of kunti, no yogi gets deluded. Therefore, arjuna, at all times be steadfast in yoga in the form of equanimity (i.e., strive constantly for my realization). (27)


पार्थ = हे पार्थ (इस प्रकार) ; एते = इन दोनों ; सृती = मार्गों को ; आनन् = तत्त्व से जानता हुआ ; कश्र्चन = कोई भी ; योगी = योगी ; न = मुह्मति = मोहित नहीं होता है ; तस्मात् = इस कारण ; अर्जुन = हे अर्जुन (तूं) ; सर्वेषु = सब ; कालेषु = काल में ; योगयुक्त: = समत्वबुद्धिरूप योग से युक्त ; भव = हो



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

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    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

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