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गीता अध्याय-8 श्लोक-3 / Gita Chapter-8 Verse-3
प्रसंग-
अर्जुन के सात प्रश्नों में से भगवान् अब पहले ब्रह्रा, अध्यात्म और कर्मविषयक तीन प्रश्नों का उत्तर अगले श्लोक में क्रमश: संक्षेप से देते हैं-
श्रीभगवानुवाच
अक्षरं ब्रह्रा परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
भूतभावोद्भवकरो विसर्ग: कर्मसंज्ञित: ।।3।।
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श्रीभगवान् ने कहा-
परम अक्षर 'ब्रह्मा' है , अपना स्वरूप अर्थात् जीवात्मा 'अध्यात्म्' नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह 'कर्म' नाम से कहा गया है ।।3।।
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Sri Bhagavan said:
The supreme indestructible is Brahma; one’s own self (the individual soul) is called Adhyatma; and the discharge of spirits (visarga), which brings forth the existence of beings, is called karma (action). (3)
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परमम् = परम ; अक्षरम् = अक्षर अर्थात् जिसका कभी नाश नहीं हो ऐसा सच्चिदानन्दघन परमात्मा तो ; ब्रह्म = ब्रह्म है (और) ; स्वभाव: = अपना स्वरूप अर्थात् जीवात्मा ; अध्यात्मम् = अध्यात्म (नाम से); उच्यते = कहा जाता है (तथा) ; भूतभावोभ्दवकर: = भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला ; विसर्ग: = शास्त्रविहित यज्ञ दान और होम आदि के निमित्त जो द्रव्यादि कों का त्याग है वह ; कर्मसंज्ञित: = कर्म नामसे कहा गया है
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