"गीता 9:4" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> <table class="gita" width="100%" align="left"> <tr> <td> ==गीता अध्याय-9 श्लोक-4 / Gita Chapter-9 Verse-4== {| width="80%" a...) |
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+ | '''प्रसंग-''' | ||
+ | ---- | ||
+ | पूर्वश्लोक में भगवान् ने जिस विज्ञान सहित ज्ञान का उपदेश करने की प्रतिज्ञा की थी तथा जिसका माहात्म्य वर्णन किया था, अब उसका आरम्भ करते हुए वे सबसे पहले दो श्लोकों में प्रभाव के साथ अपने अव्यक्तस्वरूप का वर्णन करते हैं- | ||
+ | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
− | ''' | + | '''मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।'''<br / > |
− | ''' | + | '''मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थित: ।।4।।''' |
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| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | यह | + | मुझे निराकार परमात्मा से यह सब जगत् जल से बरफ से सदृश परिपूर्ण है और सब भूत मेरे अन्तर्गत संकल्प के आधार स्थित हैं, किंतु वास्तव में मैं उनमें स्थित नहीं हूँ ।।4।। |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | + | The whole of this universe is permeated by me as unmanifest divinity, and all beings rest on the idea within me. Therefore, really speaking, I am not present in them. (4) | |
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− | इदम् = यह | + | मया = मुझ ; अव्यक्तमूर्तिना = सच्चिदानन्दघन परमात्मा से ; इदम् = यह ; सर्वम् = सब ; जगत् = जगत् (जल से बर्फ के सद्य्श) ; ततम् = परिपूर्ण है ; च = और ; सर्वभूतानि = सब भूत ; मत्स्थानि = मेरे अन्तर्गत संकल्प के आधार स्थित हैं (इसलिये वास्तव में) ; अहम् = मैं ; तेषु = उनमें ; न अवस्थित: = स्थित नहीं हूं ; |
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०८:०६, ११ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-3 / Gita Chapter-9 Verse-3
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अध्याय नौ श्लोक संख्या Verses- Chapter-9 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 |
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