द्रोणाचार्य

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द्रोणाचार्य / Dronacharya

द्रोणाचार्य
Dronacharya

द्रोण अपने पिता भारद्वाज मुनि के आश्रम में ही रहते हुये चारों वेदों तथा अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान में पारंगत हो गये थे । द्रोण का जन्म उत्तरांचल की राजधानी देहरादून में बताया जाता है, जिसे हम देहराद्रोण ( मिट्टी का सकोरा ) भी कहते थे । द्रोण के साथ प्रषत् नामक राजा के पुत्र द्रुपद भी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तथा दोनों में प्रगाढ़ मैत्री हो गई । द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहिन कृपि से हो गया और उनका अश्वत्थामा नामक पुत्र पैदा हो गया । अत्यन्त शोचनीय आर्थिक स्थिति होने के कारण जब अश्वत्थामा ने अपनी माँ से दूध पीने को माँगा तो कृपि ने अपने पुत्र को पानी में आटा घोलकर दूध बताकर पीने को दे दिया । द्रोणाचार्य को इस बात का पता चलने पर अपार कष्ट हुआ, उन्हें द्रुपद का आधा राज्य देने का वचन याद आया किन्तु द्रुपद ने द्रोणाचार्य को अपनी राज्यसभा में अपमानित किया । अपनी धर्नुविद्या कौशल और कृपाचार्य के कारण द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों को धर्नुविद्या सिखाने लगे । द्रोणाचार्य कौरव और पांडवो के गुरू थे । कौरवो और पांडवो ने द्रोणाचार्य के आश्रम मे ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी । अर्जुन द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे । वे अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहते थे । द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य अर्जुन ने अपने गुरु द्रोणाचार्य के अपमान का बदला द्रुपद से लिया । निषाद बालक एकलव्य जो कि अद्भुत धर्नुधर बन गया था । वह द्रोणाचार्य को अपना इष्ट गुरु मानता था और उनकी मूर्ति बनाकर उसके सामने अभ्यास कर धर्नुविद्या में पारंगत हो गया था अर्जुन के समकक्ष कोई ना हो जाए इस कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया । एकलव्य ने हँसते हँसते अँगूठा दे दिया । द्रोणाचार्य ने कर्ण की प्रतिभा को पहचान लिया था और उसे भी सूतपुत्र बता शिक्षा देने से मनाकर दिया था ।


महाभारत में द्रोणाचार्य ने एक विशेष युध्द योजना बनाई जिसे व्यूह रचना कहते थे, चक्रव्यूह नाम से की जिसमें अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु मारा गया । महाभारत युध्द में भीष्म पितामह के बाद मुख्य सेनापति का पद द्रोणाचार्य के पास रहा था । द्रोणाचार्य ब्रह्मास्त्र का प्रयोग जानते थे । ब्रह्मास्त्र को प्रयोग करने की विधी उन्होंने अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी सिखा रक्खी थी जिसका प्रयोग उसने महाभारत के बाद पाड़वों के वंश का समूल नाश करने हेतु अर्जुन की पुत्रवधू उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिए किया था । कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में जाकर अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित की रक्षा की थी क्योंकि सम्पूर्ण कुरूवंश के अन्तिम राजा परीक्षत ही थे । द्रोणाचार्य की मृत्यु द्रौपदी के भाई द्रष्टद्युम्न के हाथों हुई । महाभारत युध्द में भीम ने शोर मचाया कि अश्वत्थामा मारा गया । द्रोणाचार्य ने यह सुनकर युधिष्ठर की तरफ देखा । युधिष्ठर ने कहा,"अश्वत्थामा हतोहतः नरो वा कुंजरो वा ।" यह सुनकर पुत्र शोक में द्रोणाचार्य समाधिस्थ हो गये । इस का लाभ उठाकर द्रष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का सिर धड़ से अलग कर दिया उसने अपने पिता द्रुपद के अपमान का बदला लेने को द्रोणाचार्य का वध करने की प्रतिज्ञा की थी ।

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