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[[कर्ण]] की मृत्यु के पश्चात [[कृपाचार्य]] द्वारा सन्धि के लिए [[दुर्योधन]] को समझाना, सेनापति पद पर [[शल्य]] का अभिषेक, मद्रराज शल्य का अदभुत पराक्रम, [[युधिष्ठिर]] द्वारा शल्य और उनके भाई का वध, [[सहदेव]] द्वारा [[शकुनि]] का वध, बची हुई सेना के साथ दुर्योधन का पलायन, दुर्योधन का ह्रद में प्रवेश, व्याधों द्वारा जानकारी मिलने पर युधिष्ठिर का ह्रद पर जाना, युधिष्ठिर का दुर्योधन से संवाद, श्री[[कृष्ण]] और [[बलराम]] का भी वहाँ पहुँचना, दुर्योधन के साथ [[भीम]] का वाग्युद्ध और गदायुद्ध और दुर्योधन का धराशायी होना, क्रुद्ध बलराम को श्री कृष्ण द्वारा समझाया जाना, दुर्योधन का विलाप और सेनापति पद पर [[अश्वत्थामा]] का अभिषेक आदि वर्णित है।
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११:३६, ४ मार्च २०१० के समय का अवतरण

शल्य पर्व / Shalya Parv

शल्य पर्व के अन्तर्गत 2 उपपर्व है और इस पर्व में 65 अध्याय हैं। ये 2 उपपर्व इस प्रकार है-

  • ह्रदप्रवेश पर्व,
  • गदा पर्व।

कर्ण की मृत्यु के पश्चात कृपाचार्य द्वारा सन्धि के लिए दुर्योधन को समझाना, सेनापति पद पर शल्य का अभिषेक, मद्रराज शल्य का अदभुत पराक्रम, युधिष्ठिर द्वारा शल्य और उनके भाई का वध, सहदेव द्वारा शकुनि का वध, बची हुई सेना के साथ दुर्योधन का पलायन, दुर्योधन का ह्रद में प्रवेश, व्याधों द्वारा जानकारी मिलने पर युधिष्ठिर का ह्रद पर जाना, युधिष्ठिर का दुर्योधन से संवाद, श्रीकृष्ण और बलराम का भी वहाँ पहुँचना, दुर्योधन के साथ भीम का वाग्युद्ध और गदायुद्ध और दुर्योधन का धराशायी होना, क्रुद्ध बलराम को श्री कृष्ण द्वारा समझाया जाना, दुर्योधन का विलाप और सेनापति पद पर अश्वत्थामा का अभिषेक आदि वर्णित है।

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