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*काशीराज की तीन कन्याओं में [[अंबा]] सबसे बड़ी थी। [[भीष्म]] ने स्वयंवर में अपनी शक्ति से उन तीनों का अपहरण कर अपने छोटे भाई [[विचित्रवीर्य]] से विवाह के निमित्त माता [[सत्यवती]] को सौंपना चाहा, तब अंबा ने बताया कि वह शाल्वराज से विवाह करना चाहती है। उसे वयोवृद्ध ब्राह्मणों के साथ राजा शाल्व के पास भेज दिया गया। [[शाल्व]] ने अंबा को ग्रहण नहीं किया। अत: उसने वन में तपस्वियों की शरण ग्रहण की।  
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*काशीराज की तीन कन्याओं में [[अंबा]] सबसे बड़ी थी। [[भीष्म]] ने स्वयंवर में अपनी शक्ति से उन तीनों का अपहरण कर अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य से विवाह के निमित्त माता सत्यवती को सौंपना चाहा, तब अंबा ने बताया कि वह शाल्वराज से विवाह करना चाहती है। उसे वयोवृद्ध ब्राह्मणों के साथ राजा शाल्व के पास भेज दिया गया। [[शाल्व]] ने अंबा को ग्रहण नहीं किया। अत: उसने वन में तपस्वियों की शरण ग्रहण की।  
*तपस्वियों के मध्य उसका साक्षात्कार अपने नाना महात्मा राजर्षि होत्रवाहन से हुआ। होत्रवाहन ने उसे पहचानकर गले से लगा लिया। संयोगवश वहां [[परशुराम]] के प्रिय सखा अकृतव्रण भी उपस्थित थे। उनसे सलाह कर नाना ने अंबा को परशुराम की शरण में भेज दिया। परशुराम ने समस्त कथा सुनकर पूछा कि वह किससे अधिक रुष्ट है- भीष्म से अथवा शाल्वराज से? अंबा ने कहा कि यदि भीष्म उसका अपहरण न करते तो उसे यह कष्ट नहीं उठाना पड़ता। अत: परशुराम भीष्म को मार डालें। परशुराम ने उसे अभयदान दिया तथा [[कुरुक्षेत्र]] में जाकर भीष्म को ललकारा। *परशुराम भीष्म के गुरु रहे थे। आदरपूर्वक उन्हें प्रणाम कर दोनों का युद्ध प्रांरभ हुआ। कभी परशुराम मूर्च्छित हो जाते, कभी भीष्म। एक बार मूर्च्छा में भीष्म रथ से गिरने लगे तो उन्हें आठ ब्राह्मणों ने अधर में अपनी भुजाओं पर रोक लिया कि वे भूमि पर न गिरें। उनकी माता [[गंगा]] ने रथ को थाम लिया। ब्राह्मणों ने पानी के छींटे देकर उन्हें निर्भय रहने का आदेश दिया। उस रात आठों ब्राह्मणों (अष्ट वसुओं) ने स्वप्न में दर्शन देकर भीष्म से अभय रहने के लिए कहा तथा युद्ध में प्रयुक्त करने के लिए स्वाप नामक अस्त्र भी प्रदान किया। वसुओं ने कहा कि पूर्वजन्म में भीष्म उसकी प्रयोग-विधि जानते थे, अत: अनायास ही 'स्वाप' का प्रयोग कर लेंगे तथा परशुराम इससे अनभिज्ञ हैं। अगले दिन रणक्षेत्र में पहुंचकर गत अनेक दिवसों के क्रमानुसार दोनों का युद्ध प्रारंभ हुआ। भीष्म ने 'स्वाप' नामक अस्त्र का प्रयोग करना चाहा, किंतु [[नारद]] आदि देवताओं ने तथा माता गंगा ने बीच में पड़कर दोनों का युद्ध रुकवा दिया। उन्होंने कहा कि युद्ध व्यर्थ है, क्योंकि दोनों परस्पर अवध्य हैं। परशुराम ने अंबा से उसकी प्रथम इच्छा पूरी न कर पाने के कारण क्षमा-याचना की तथा दूसरी कोई इच्छा जाननी चाही। अंबा ने इस आकांक्षा से कि वह स्वयं ही भीष्म को मारने योग्य शक्ति संचय कर पाये, घोर तपस्या की। गंगा ने दर्शन देकर कहा-'तेरी यह इच्छा कभी पूर्ण नहीं होगी। यदि तू तपस्या करती हुई ही प्राण त्याग करेगी, तब भी तू मात्र बरसाती नदी बन पायेगी।' तीर्थ करने के निमित्त वह वत्स देश में भटकती रहती थी।  
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*तपस्वियों के मध्य उसका साक्षात्कार अपने नाना महात्मा राजर्षि होत्रवाहन से हुआ। होत्रवाहन ने उसे पहचानकर गले से लगा लिया। संयोगवश वहां [[परशुराम]] के प्रिय सखा अकृतव्रण भी उपस्थित थे। उनसे सलाह कर नाना ने अंबा को परशुराम की शरण में भेज दिया। परशुराम ने समस्त कथा सुनकर पूछा कि वह किससे अधिक रुष्ट है- भीष्म से अथवा शाल्वराज से? अंबा ने कहा कि यदि भीष्म उसका अपहरण न करते तो उसे यह कष्ट नहीं उठाना पड़ता। अत: परशुराम भीष्म को मार डालें। परशुराम ने उसे अभयदान दिया तथा [[कुरुक्षेत्र]] में जाकर भीष्म को ललकारा।  
*अत: मृत्यु के उपरांत तपस्या के प्रभाव से उसके आधे अंग वत्स देश स्थित अंबा नामक बरसाती नदी बन गये तथा शेष आधे अंग वत्सदेश की राजकन्या के रूप में प्रकट हुए। उस जन्म में भी उसने तपस्या करने की ठान लीं उसे नारी-रूप से विरक्ति हो गयी थीं वह पुरुष-रूप धारण कर भीष्म को मारना चाहती थी। [[शिव]] ने उसे दर्शन दिये। उन्होंने वरदान दिया कि वह [[द्रुपद]] के यहां कन्या-रूप में जन्म लेगी, कालांतर में युद्ध-क्षेत्र में जाने के लिए उसे पुरुषत्व प्राप्त हो जायेगा तथा वह भीष्म की हत्या करेगी। अंबा ने संतुष्ट होकर, भीष्म को मारने के संकल्प के साथ चिता में प्रवेश कर आत्मदाह किया।  
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*परशुराम भीष्म के गुरु रहे थे। आदरपूर्वक उन्हें प्रणाम कर दोनों का युद्ध प्रांरभ हुआ। कभी परशुराम मूर्च्छित हो जाते, कभी भीष्म। एक बार मूर्च्छा में भीष्म रथ से गिरने लगे तो उन्हें आठ ब्राह्मणों ने अधर में अपनी भुजाओं पर रोक लिया कि वे भूमि पर न गिरें। उनकी माता [[गंगा]] ने रथ को थाम लिया। ब्राह्मणों ने पानी के छींटे देकर उन्हें निर्भय रहने का आदेश दिया। उस रात आठों ब्राह्मणों (अष्ट वसुओं) ने स्वप्न में दर्शन देकर भीष्म से अभय रहने के लिए कहा तथा युद्ध में प्रयुक्त करने के लिए स्वाप नामक अस्त्र भी प्रदान किया। वसुओं ने कहा कि पूर्वजन्म में भीष्म उसकी प्रयोग-विधि जानते थे, अत: अनायास ही 'स्वाप' का प्रयोग कर लेंगे तथा परशुराम इससे अनभिज्ञ हैं। अगले दिन रणक्षेत्र में पहुंचकर गत अनेक दिवसों के क्रमानुसार दोनों का युद्ध प्रारंभ हुआ। भीष्म ने 'स्वाप' नामक अस्त्र का प्रयोग करना चाहा, किंतु [[नारद]] आदि देवताओं ने तथा माता गंगा ने बीच में पड़कर दोनों का युद्ध रुकवा दिया। उन्होंने कहा कि युद्ध व्यर्थ है, क्योंकि दोनों परस्पर अवध्य हैं। परशुराम ने अंबा से उसकी प्रथम इच्छा पूरी न कर पाने के कारण क्षमा-याचना की तथा दूसरी कोई इच्छा जाननी चाही। अंबा ने इस आकांक्षा से कि वह स्वयं ही भीष्म को मारने योग्य शक्ति संचय कर पाये, घोर तपस्या की। गंगा ने दर्शन देकर कहा-'तेरी यह इच्छा कभी पूर्ण नहीं होगी। यदि तू तपस्या करती हुई ही प्राण त्याग करेगी, तब भी तू मात्र बरसाती नदी बन पायेगी।' तीर्थ करने के निमित्त वह वत्स देश में भटकती रहती थी।  
*उधर द्रुपद की पटरानी के कोई पुत्र नही था। [[कौरव|कौरवों]] के वध के लिए पुत्र-प्राप्ति के हेतु द्रुपद ने घोर तपस्या की और शिव ने उन्हें भी दर्शन देकर कहा कि वे कन्या को प्राप्त करेंगे जो बाद में पुत्र में परिणत हो जायेगी। अत: जब शिखंडिनी का जन्म हुआ तब उसका लालन-पालन पुत्रवत किया गया। उसका नाम शिखंडी बताकर सबपर उसका लड़का होना ही प्रकट किया गया। *कालांतर में हिरण्यवर्मा की पुत्री से उसका विवाह कर दिया गया। पुत्री ने पिता के पास शिखंडी के नारी होने का समाचार भेजा तो वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ तथा द्रुपद से युद्ध करने की तैयारी करने लगा। इधर सब लोग बहुत व्याकुल थे। शिखंडिनी ने वन में जाकर तपस्या की। यक्षस्थूलाकर्ण ने भावी युद्ध के संकट का विमोचन करने के निमित्त कुछ समय के लिए अपना पुरूषत्व उसके स्त्रीत्व से बदल लिया।  
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*अत: मृत्यु के उपरांत तपस्या के प्रभाव से उसके आधे अंग वत्स देश स्थित अंबा नामक बरसाती नदी बन गये तथा शेष आधे अंग वत्सदेश की राजकन्या के रूप में प्रकट हुए। उस जन्म में भी उसने तपस्या करने की ठान लीं उसे नारी-रूप से विरक्ति हो गयी थीं वह पुरुष-रूप धारण कर भीष्म को मारना चाहती थी। [[शिव]] ने उसे दर्शन दिये। उन्होंने वरदान दिया कि वह [[द्रुपद]] के यहाँ कन्या-रूप में जन्म लेगी, कालांतर में युद्ध-क्षेत्र में जाने के लिए उसे पुरुषत्व प्राप्त हो जायेगा तथा वह भीष्म की हत्या करेगी। अंबा ने संतुष्ट होकर, भीष्म को मारने के संकल्प के साथ चिता में प्रवेश कर आत्मदाह किया।  
*शिखंडी ने यह समाचार माता-पिता को दिया। हिरण्यवर्मा को जब यह विदित हुआ कि शिखंडी पुरूष है-युद्ध-विद्या में [[द्रोणाचार्य]] का शिष्य है, तब उसने शिखंडी की निरीक्षण-परीक्षण कर द्रुपद के प्रति पुन: मित्रता का हाथ बढ़ाया तथा अपनी कन्या को मिथ्या वाचन के लिए डांटकर राजा द्रुपद के घर से ससम्मान प्रस्थान किया। इन्हीं दिनों स्थूलाकर्ण यक्ष के आवास पर [[कुबेर]] गये किंतु स्त्रीरूप में होने के कारण लज्जावश स्थूलकर्ण ने प्रत्यक्ष उपस्थित होकर उनका सत्कार नहीं किया। अत: कुबेर ने कुपित होकर यज्ञ को शिखंडी के जीवित रहने तक स्त्री-रूप में रहने का शाप दिया। अत: शिखंडी जब पुरुषत्व लौटाने वहां पहुंचा तो स्थूलाकर्ण पुरुषत्व वापस नहीं ले पाया।<balloon title="महाभारत, उद्योगपर्व, 173-192" style="color:blue">*</balloon>  
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*उधर द्रुपद की पटरानी के कोई पुत्र नहीं था। [[कौरव|कौरवों]] के वध के लिए पुत्र-प्राप्ति के हेतु द्रुपद ने घोर तपस्या की और शिव ने उन्हें भी दर्शन देकर कहा कि वे कन्या को प्राप्त करेंगे जो बाद में पुत्र में परिणत हो जायेगी। अत: जब शिखंडिनी का जन्म हुआ तब उसका लालन-पालन पुत्रवत किया गया। उसका नाम शिखंडी बताकर सबपर उसका लड़का होना ही प्रकट किया गया।  
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*कालांतर में हिरण्यवर्मा की पुत्री से उसका विवाह कर दिया गया। पुत्री ने पिता के पास शिखंडी के नारी होने का समाचार भेजा तो वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ तथा द्रुपद से युद्ध करने की तैयारी करने लगा। इधर सब लोग बहुत व्याकुल थे। शिखंडिनी ने वन में जाकर तपस्या की। यक्षस्थूलाकर्ण ने भावी युद्ध के संकट का विमोचन करने के निमित्त कुछ समय के लिए अपना पुरुषत्व उसके स्त्रीत्व से बदल लिया।  
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*शिखंडी ने यह समाचार माता-पिता को दिया। हिरण्यवर्मा को जब यह विदित हुआ कि शिखंडी पुरुष है-युद्ध-विद्या में [[द्रोणाचार्य]] का शिष्य है, तब उसने शिखंडी की निरीक्षण-परीक्षण कर द्रुपद के प्रति पुन: मित्रता का हाथ बढ़ाया तथा अपनी कन्या को मिथ्या वाचन के लिए डांटकर राजा द्रुपद के घर से ससम्मान प्रस्थान किया। इन्हीं दिनों स्थूलाकर्ण यक्ष के आवास पर [[कुबेर]] गये किंतु स्त्रीरूप में होने के कारण लज्जावश स्थूलकर्ण ने प्रत्यक्ष उपस्थित होकर उनका सत्कार नहीं किया। अत: कुबेर ने कुपित होकर यज्ञ को शिखंडी के जीवित रहने तक स्त्री-रूप में रहने का शाप दिया। अत: शिखंडी जब पुरुषत्व लौटाने वहां पहुंचा तो स्थूलाकर्ण पुरुषत्व वापस नहीं ले पाया।<balloon title="महाभारत, उद्योगपर्व, 173-192" style="color:blue">*</balloon>  
  
 
    
 
    
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शिखंडी / Shikhandi

  • काशीराज की तीन कन्याओं में अंबा सबसे बड़ी थी। भीष्म ने स्वयंवर में अपनी शक्ति से उन तीनों का अपहरण कर अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य से विवाह के निमित्त माता सत्यवती को सौंपना चाहा, तब अंबा ने बताया कि वह शाल्वराज से विवाह करना चाहती है। उसे वयोवृद्ध ब्राह्मणों के साथ राजा शाल्व के पास भेज दिया गया। शाल्व ने अंबा को ग्रहण नहीं किया। अत: उसने वन में तपस्वियों की शरण ग्रहण की।
  • तपस्वियों के मध्य उसका साक्षात्कार अपने नाना महात्मा राजर्षि होत्रवाहन से हुआ। होत्रवाहन ने उसे पहचानकर गले से लगा लिया। संयोगवश वहां परशुराम के प्रिय सखा अकृतव्रण भी उपस्थित थे। उनसे सलाह कर नाना ने अंबा को परशुराम की शरण में भेज दिया। परशुराम ने समस्त कथा सुनकर पूछा कि वह किससे अधिक रुष्ट है- भीष्म से अथवा शाल्वराज से? अंबा ने कहा कि यदि भीष्म उसका अपहरण न करते तो उसे यह कष्ट नहीं उठाना पड़ता। अत: परशुराम भीष्म को मार डालें। परशुराम ने उसे अभयदान दिया तथा कुरुक्षेत्र में जाकर भीष्म को ललकारा।
  • परशुराम भीष्म के गुरु रहे थे। आदरपूर्वक उन्हें प्रणाम कर दोनों का युद्ध प्रांरभ हुआ। कभी परशुराम मूर्च्छित हो जाते, कभी भीष्म। एक बार मूर्च्छा में भीष्म रथ से गिरने लगे तो उन्हें आठ ब्राह्मणों ने अधर में अपनी भुजाओं पर रोक लिया कि वे भूमि पर न गिरें। उनकी माता गंगा ने रथ को थाम लिया। ब्राह्मणों ने पानी के छींटे देकर उन्हें निर्भय रहने का आदेश दिया। उस रात आठों ब्राह्मणों (अष्ट वसुओं) ने स्वप्न में दर्शन देकर भीष्म से अभय रहने के लिए कहा तथा युद्ध में प्रयुक्त करने के लिए स्वाप नामक अस्त्र भी प्रदान किया। वसुओं ने कहा कि पूर्वजन्म में भीष्म उसकी प्रयोग-विधि जानते थे, अत: अनायास ही 'स्वाप' का प्रयोग कर लेंगे तथा परशुराम इससे अनभिज्ञ हैं। अगले दिन रणक्षेत्र में पहुंचकर गत अनेक दिवसों के क्रमानुसार दोनों का युद्ध प्रारंभ हुआ। भीष्म ने 'स्वाप' नामक अस्त्र का प्रयोग करना चाहा, किंतु नारद आदि देवताओं ने तथा माता गंगा ने बीच में पड़कर दोनों का युद्ध रुकवा दिया। उन्होंने कहा कि युद्ध व्यर्थ है, क्योंकि दोनों परस्पर अवध्य हैं। परशुराम ने अंबा से उसकी प्रथम इच्छा पूरी न कर पाने के कारण क्षमा-याचना की तथा दूसरी कोई इच्छा जाननी चाही। अंबा ने इस आकांक्षा से कि वह स्वयं ही भीष्म को मारने योग्य शक्ति संचय कर पाये, घोर तपस्या की। गंगा ने दर्शन देकर कहा-'तेरी यह इच्छा कभी पूर्ण नहीं होगी। यदि तू तपस्या करती हुई ही प्राण त्याग करेगी, तब भी तू मात्र बरसाती नदी बन पायेगी।' तीर्थ करने के निमित्त वह वत्स देश में भटकती रहती थी।
  • अत: मृत्यु के उपरांत तपस्या के प्रभाव से उसके आधे अंग वत्स देश स्थित अंबा नामक बरसाती नदी बन गये तथा शेष आधे अंग वत्सदेश की राजकन्या के रूप में प्रकट हुए। उस जन्म में भी उसने तपस्या करने की ठान लीं उसे नारी-रूप से विरक्ति हो गयी थीं वह पुरुष-रूप धारण कर भीष्म को मारना चाहती थी। शिव ने उसे दर्शन दिये। उन्होंने वरदान दिया कि वह द्रुपद के यहाँ कन्या-रूप में जन्म लेगी, कालांतर में युद्ध-क्षेत्र में जाने के लिए उसे पुरुषत्व प्राप्त हो जायेगा तथा वह भीष्म की हत्या करेगी। अंबा ने संतुष्ट होकर, भीष्म को मारने के संकल्प के साथ चिता में प्रवेश कर आत्मदाह किया।
  • उधर द्रुपद की पटरानी के कोई पुत्र नहीं था। कौरवों के वध के लिए पुत्र-प्राप्ति के हेतु द्रुपद ने घोर तपस्या की और शिव ने उन्हें भी दर्शन देकर कहा कि वे कन्या को प्राप्त करेंगे जो बाद में पुत्र में परिणत हो जायेगी। अत: जब शिखंडिनी का जन्म हुआ तब उसका लालन-पालन पुत्रवत किया गया। उसका नाम शिखंडी बताकर सबपर उसका लड़का होना ही प्रकट किया गया।
  • कालांतर में हिरण्यवर्मा की पुत्री से उसका विवाह कर दिया गया। पुत्री ने पिता के पास शिखंडी के नारी होने का समाचार भेजा तो वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ तथा द्रुपद से युद्ध करने की तैयारी करने लगा। इधर सब लोग बहुत व्याकुल थे। शिखंडिनी ने वन में जाकर तपस्या की। यक्षस्थूलाकर्ण ने भावी युद्ध के संकट का विमोचन करने के निमित्त कुछ समय के लिए अपना पुरुषत्व उसके स्त्रीत्व से बदल लिया।
  • शिखंडी ने यह समाचार माता-पिता को दिया। हिरण्यवर्मा को जब यह विदित हुआ कि शिखंडी पुरुष है-युद्ध-विद्या में द्रोणाचार्य का शिष्य है, तब उसने शिखंडी की निरीक्षण-परीक्षण कर द्रुपद के प्रति पुन: मित्रता का हाथ बढ़ाया तथा अपनी कन्या को मिथ्या वाचन के लिए डांटकर राजा द्रुपद के घर से ससम्मान प्रस्थान किया। इन्हीं दिनों स्थूलाकर्ण यक्ष के आवास पर कुबेर गये किंतु स्त्रीरूप में होने के कारण लज्जावश स्थूलकर्ण ने प्रत्यक्ष उपस्थित होकर उनका सत्कार नहीं किया। अत: कुबेर ने कुपित होकर यज्ञ को शिखंडी के जीवित रहने तक स्त्री-रूप में रहने का शाप दिया। अत: शिखंडी जब पुरुषत्व लौटाने वहां पहुंचा तो स्थूलाकर्ण पुरुषत्व वापस नहीं ले पाया।<balloon title="महाभारत, उद्योगपर्व, 173-192" style="color:blue">*</balloon>