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==सोमवती अमावस्या / Somvati Amavasya==
 
==सोमवती अमावस्या / Somvati Amavasya==
 
*जिस अमावस्या को सोमवार हो उसी दिन इस व्रत का विधान है। प्रत्येक मास एक अमावस्या आती है। और प्रत्येक सात दिन बाद एक सोमवार। परन्तु ऐसा बहुत ही कम होता है जब अमावस्या सोमवार के दिन हो। वर्ष में कई बार सोमवती अमावस्या आती रहती है।  
 
*जिस अमावस्या को सोमवार हो उसी दिन इस व्रत का विधान है। प्रत्येक मास एक अमावस्या आती है। और प्रत्येक सात दिन बाद एक सोमवार। परन्तु ऐसा बहुत ही कम होता है जब अमावस्या सोमवार के दिन हो। वर्ष में कई बार सोमवती अमावस्या आती रहती है।  
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१३:१५, ११ सितम्बर २०१० के समय का अवतरण

सोमवती अमावस्या / Somvati Amavasya

  • जिस अमावस्या को सोमवार हो उसी दिन इस व्रत का विधान है। प्रत्येक मास एक अमावस्या आती है। और प्रत्येक सात दिन बाद एक सोमवार। परन्तु ऐसा बहुत ही कम होता है जब अमावस्या सोमवार के दिन हो। वर्ष में कई बार सोमवती अमावस्या आती रहती है।
  • यह स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस पर्व पर स्नान करने लोग दूर-दूर से आते हैं।
  • हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है, पाण्डव पूरे जीवन तरसते रहे परंतु उनके संपूर्ण जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई।
  • किसी भी मास की अमावस्या यदि सोमवार को हो तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाएगा।
  • इस दिन यमुनादि नदियों, मथुरा आदि तीर्थों में स्नान, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशिष्ट महत्व है। यही कारण हे कि गंगा और अन्य पवित्र नदियों के तटों पर इतने श्रद्धालु एकत्रित हो जाते हैं कि वहां मेले ही लग जाते हैं।
  • सोमवती अमावस्या को गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों में स्नान पहले तो एक धार्मिक उत्सव का रूप ले लेता था।
  • निर्णय सिंधु व्यास के वचनानुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह स्त्रियों का प्रमुख व्रत है।
  • सोमवार चंद्रमा का दिन हैं। इस दिन (प्रत्येक अमावस्या को) सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है।
  • सोमवार भगवान शिव जी का दिन माना जाता है और सोमवती अमावस्या तो पूर्णरूपेण शिव जी को समर्पित होती है।
  • इस दिन यदि गंगा जी जाना संभव न हो तो प्रात:काल किसी नदी या सरोवर आदि में स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और तुलसी की भक्तिपूर्वक पूजा करें। फिर पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करें और प्रत्येक परिक्रमा में कोई वस्तु चढ़ाए। प्रदक्षिणा के समय 108 फल अलग रखकर समापन के समय वे सभी वस्तुएं ब्राह्मणों और निर्धनों को दान करें।


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