"हल षष्ठी" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति १: पंक्ति १:
 
{{menu}}
 
{{menu}}
 
*भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।  
 
*भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।  
*[[भाद्रपद]] कृष्ण [[षष्ठी]] को इस नाम से पुकारा जाता है।<ref>निर्णयसिन्धु (123)</ref>
+
*भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को इस नाम से पुकारा जाता है।<ref>निर्णयसिन्धु (123)</ref>
 
*हल षष्ठी के दिन [[मथुरा]]  मण्डल और भारत के समस्त बलदेव मन्दिरों में बृज के राजा [[बलराम]] का जन्मोत्सव आज भी उसी प्रकार मनाया जाता है।  
 
*हल षष्ठी के दिन [[मथुरा]]  मण्डल और भारत के समस्त बलदेव मन्दिरों में बृज के राजा [[बलराम]] का जन्मोत्सव आज भी उसी प्रकार मनाया जाता है।  
 
*बलदेव छठ को दाऊजी में 'हलधर जन्मोत्सव' का आयोजन बड़ी भव्यता के साथ किया जाता है।  
 
*बलदेव छठ को दाऊजी में 'हलधर जन्मोत्सव' का आयोजन बड़ी भव्यता के साथ किया जाता है।  

०७:३२, १३ सितम्बर २०१० का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को इस नाम से पुकारा जाता है।[१]
  • हल षष्ठी के दिन मथुरा मण्डल और भारत के समस्त बलदेव मन्दिरों में बृज के राजा बलराम का जन्मोत्सव आज भी उसी प्रकार मनाया जाता है।
  • बलदेव छठ को दाऊजी में 'हलधर जन्मोत्सव' का आयोजन बड़ी भव्यता के साथ किया जाता है।
  • दाऊजी महाराज कमर में धोती बाँधे हैं। कानों में कुण्डल, गले में वैजयन्ती माला है। विग्रह के चरणों में सुषल तोष व श्रीदामा आदि सखाओं की मूर्तियाँ हैं।
  • बृजमण्डल के प्रमुख देवालयों में स्थापित विग्रहों में बल्देव जी का विग्रह अति प्राचीन माना जाता है। यहाँ पर इतना बड़ा तथा आकर्षक विग्रह वैष्णव विग्रहों में दिखाई नहीं देता है।
  • बताया जाता है कि गोकुल में श्रीमद बल्लभाचार्य महाप्रभु के पौत्र गोस्वामी गोकुलनाथ को बल्देव जी ने स्वप्न दिया कि श्याम गाय जिस स्थान पर प्रतिदिन दूध स्त्रावित कर जाती है, उस स्थान पर भूमि में उनकी प्रतिमा दबी हुई है, उन्होंने भूमि की खुदाई कराकर श्री विग्रह को निकाला तथा 'क्षीरसागर' का निर्माण हुआ।
  • गोस्वामी जी ने विग्रह को कल्याण देवजी को पूजा-अर्चना के लिये सौंप दिया तथा मन्दिर का निर्माण कराया। उस दिन से आज तक कल्याण देव के वंशज ही मन्दिर में सेवा-पूजा करते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. निर्णयसिन्धु (123)

सम्बंधित लिंक