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गीता अध्याय-8 श्लोक-1 / Gita Chapter-8 Verse-1
अष्टमोऽध्याय प्रसंग-
'अक्षर' और 'ब्रह्म' दोनों शब्द भगवान् के सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों के वाचक है (8|3,11,21,24) तथा भगवान् का नाम 'ऊँ' है उसे भी 'अक्षर' और 'ब्रह्म' कहते हैं (8।13) । इस अध्याय में भगवान् के सगुण-निर्गुण रूप का और ओंकार का वर्णन है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'अक्षर ब्रह्रायोग' रखा गया है ।
प्रसंग-
भगवान् को जानने की बात का रहस्य भली-भाँति न समझने के कारण इस आठवें अध्याय के आरम्भ में पहले दो श्लोकों में <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> उपर्युक्त सातों विषयों को समझने के लिये भगवान से सात प्रश्न करते हैं
अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्रा किमध्यात्मं किं कर्म पुरूषोत्तम् ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ।।1।।
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अर्जुन ने कहा –
हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, पुरूषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">पुरूषोत्तम</balloon> ! वह ब्रह्म क्या है ? अध्यात्म क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं ।।1।।
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Arjuna, said:
Krishna, what is that Brahma (Absolute), what is Adhyatma (Spirit), and what is Karma (Action) ? What is called Adhibhuta (matter) and what is termed as Adhidaiva (divine intelligence)? (1)
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पुरूषोत्तम = हे पुरूषोत्तम ; तत् = (जिसका आपने वर्णन किया) वह ; ब्रह्म = ब्रह्म ; किम् = क्या है (और) ; अध्यात्मम् = अध्यात्म ; किम् = क्या है (तथा) ; कर्म = कर्म ; किम् = क्या है ; च = और ; अधिभूतम् = अधिभूत (नाम से) ; किम् = क्या ; प्रोक्तम् = कहा गया है (तथा) ; अधिदैवम् = अधिदैव (नाम से) ; किम् = क्या ; उच्यते = कहा जाता है ;
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