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गीता अध्याय-8 श्लोक-5 / Gita Chapter-8 Verse-5
प्रसंग-
इस प्रकार अर्जुन के छ: प्रश्नों का उत्तर देकर अब भगवान् अन्तकाल संबंधी सातवें प्रश्न का उत्तर आरम्भ करते हैं-
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय: ।।5।।
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जो पुरूष अन्तकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरूप को प्राप्त होता है- उसमें कुछ भी संशय नहीं है ।।5।।
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He who departs from the body, thinking of me alone even at the time of death, attains my state; there is no doubt about it. (5)
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च = और ; य: = जो पुरूष ; अन्तकाले = अन्तकाल में ; माम् = मेरे को ; एव = ही ;स्मरन् = स्मरण करता हुआ ; कलेवरम् = शरीर को ; मुक्त्वा = त्याग कर ; प्रयाति = जाता है ; स: = वह ; मभ्दावम् = मेरे (साक्षात्) स्वरूप को ; याति = प्राप्त होता है ; अत्र = इसमें (कुछ भी) ; संशय: = संशय ; न = नहीं ; अस्ति = है
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