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*अर्जुन सबसे अच्छा तीरंदाज था। वो [[द्रोणाचार्य]] का शिष्य था जीवन मे अनेक अवसरों पर उसने इसका परिचय दिया था [[द्रौपदी]] को स्वयंम्वर मे जीतने वाला वो ही था। | *अर्जुन सबसे अच्छा तीरंदाज था। वो [[द्रोणाचार्य]] का शिष्य था जीवन मे अनेक अवसरों पर उसने इसका परिचय दिया था [[द्रौपदी]] को स्वयंम्वर मे जीतने वाला वो ही था। | ||
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− | *द्रोणाचार्य के ये प्रिय शिष्य थे। [[परशुराम]] से भी इन्होंने शास्त्रास्त्र विद्या सीखी थी। [[हिमालय]] में तपस्या करते समय किरात वेशधारी [[शिव]] से इनका युद्ध हुआ था। शिव से इन्हें [[अस्त्र शस्त्र|पाशुपत अस्त्र]] और अग्नि से [[अस्त्र शस्त्र|आग्नेयास्त्र]], गांडीव धनुष तथा अक्षय तुणीर प्राप्त हुआ। [[ | + | *द्रोणाचार्य के ये प्रिय शिष्य थे। [[परशुराम]] से भी इन्होंने शास्त्रास्त्र विद्या सीखी थी। [[हिमालय]] में तपस्या करते समय किरात वेशधारी [[शिव]] से इनका युद्ध हुआ था। शिव से इन्हें [[अस्त्र शस्त्र|पाशुपत अस्त्र]] और अग्नि से [[अस्त्र शस्त्र|आग्नेयास्त्र]], [[गांडीव धनुष]] तथा अक्षय तुणीर प्राप्त हुआ। [[वरुण]] ने इनको नंदिघोष नामक विशाल रथ प्रदान किया। |
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*आधुनिक युग में भारत सरकार द्वारा पराक्रमी अर्जुन के नाम पर ही श्रेष्ठ खिलाड़ियों को प्रतिवर्ष 'अर्जुन पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है। | *आधुनिक युग में भारत सरकार द्वारा पराक्रमी अर्जुन के नाम पर ही श्रेष्ठ खिलाड़ियों को प्रतिवर्ष 'अर्जुन पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है। | ||
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अर्जुन
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अन्य नाम | पार्थ, सव्यसाची, धनंजय, भारत, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, अजानबाहो |
अवतार | इन्द्र का अंशावतार |
वंश-गोत्र | चंद्रवंश |
कुल | यदुकुल |
पिता | पाण्डु |
माता | कुन्ती, माद्री(विमाता) |
जन्म विवरण | कुन्ती द्वारा इन्द्र का आवाहन करने से प्राप्त पुत्र अर्जुन |
समय-काल | महाभारत काल |
परिजन | भाई युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव, कर्ण |
गुरु | द्रोणाचार्य |
विवाह | द्रौपदी, सुभद्रा, उलूपी, चित्रांगदा, |
संतान | द्रौपदी से श्रुतकर्मा और सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। |
विद्या पारंगत | धनुर्विद्या में पारंगत |
महाजनपद | कुरु |
शासन-राज्य | हस्तिनापुर, इन्द्रप्रस्थ |
मृत्यु | "मैं एक ही दिन में शत्रुओं को भस्म कर डालूँगा" किन्तु ऐसा किया नहीं, इसी कारण इनकी मृत्यु स्वर्ग जाते समय मार्ग में हो गई। |
संबंधित लेख | महाभारत |
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- महाभारत के प्रमुख पात्र
- कृष्ण|कृष्ण
- अर्जुन|अर्जुन
- धृतराष्ट्र|धृतराष्ट्र
- द्रोणाचार्य|द्रोणाचार्य
- कुन्ती|कुन्ती
- दुर्योधन|दुर्योधन
- कर्ण|कर्ण
- अभिमन्यु|अभिमन्यु
- भीम|भीम
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- युधिष्ठिर|युधिष्ठिर
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- अश्वत्थामा|अश्वत्थामा
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- भीष्म|भीष्म
- शकुनि|शकुनि
- संजय|संजय
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अर्जुन / Arjuna
महाभारत के मुख्य पात्र हैं। महाराज पाण्डु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। जब पाण्डु संतान उत्पन्न करने में असफल रहे तो कुन्ती ने उनको एक वरदान के बारे में याद दिलाया। कुन्ती को कुंआरेपन में महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था जिसमें कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थीं और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी। पाण्डु एवं कुन्ती ने इस वरदान का प्रयोग किया एवं धर्मराज, वायु एवं इन्द्र देवता का आवाहन किया।
अर्जुन तीसरे पुत्र थे जो देवताओं के राजा इन्द्र से हुए।
- अर्जुन सबसे अच्छा तीरंदाज था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था जीवन मे अनेक अवसरों पर उसने इसका परिचय दिया था द्रौपदी को स्वयंम्वर मे जीतने वाला वो ही था।
- पांडु की ज्येष्ठ पत्नी वासुदेव कृष्ण की बुआ कुंती थी जिसने इन्द्र के संसर्ग से अर्जुन को जन्म दिया। कुंती का एक नाम पृथा था, इसलिए अर्जुन 'पार्थ' भी कहलाए। वाएं हाथ से भी धनुष चलाने के कारण 'सव्यसाची' और उत्तरी प्रदेशों को जीतकर अतुल संपत्ति प्राप्त करने के कारण 'धनंजय' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
- द्रोणाचार्य के ये प्रिय शिष्य थे। परशुराम से भी इन्होंने शास्त्रास्त्र विद्या सीखी थी। हिमालय में तपस्या करते समय किरात वेशधारी शिव से इनका युद्ध हुआ था। शिव से इन्हें पाशुपत अस्त्र और अग्नि से आग्नेयास्त्र, गांडीव धनुष तथा अक्षय तुणीर प्राप्त हुआ। वरुण ने इनको नंदिघोष नामक विशाल रथ प्रदान किया।
- इन्द्रपुरी में अप्सरा उर्वशी इन पर मोहित हो गई थी। पर उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण इन्हें एक वर्ष तक नपुंसक रहकर बृहन्नला के रूप में विराट की कन्या उत्तरा को नृत्य की शिक्षा देनी पड़ी थी।
- नागकन्या उलूपी से इन्हें इरावत नामक पुत्र प्राप्त हुआ।
- मणिपुर के राजा की कन्या चित्रांगदा से विवाह करके उससे बभ्रु वाहन को जन्म दिया।
- श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा भी अर्जुन की पत्नी थी। जिसके गर्भ से अभिमन्यु पैदा हुआ। स्वयंवर में द्रौपदी को जीतने वाले लक्ष्य भेदी के रूप में तो अर्जुन की ख्याति है ही।
- महाभारत युद्ध में कृष्ण अर्जुन के सारथी थे। युद्ध के आरंभ में अपने ही बंधु-बांधवों को प्रतिपक्ष में देखकर अर्जुन मोहाच्छन्न हो गए थे। तब श्रीकृष्ण ने गीता का संदेश देकर उन्हें कर्त्तव्य-पथ पर लगाया। महाभारत में पांडवों की विजय का बहुत कुछ श्रेय अर्जुन को है। महाभारत युद्ध के बाद भी अपने भाइयों के साथ हिमालय चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।
- आधुनिक युग में भारत सरकार द्वारा पराक्रमी अर्जुन के नाम पर ही श्रेष्ठ खिलाड़ियों को प्रतिवर्ष 'अर्जुन पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है।