"गीता 13:19" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | अब उन सबका वर्णन करने के लिये भगवान् पुन: प्रकृति और | + | अब उन सबका वर्णन करने के लिये भगवान् पुन: प्रकृति और पुरुष के नाम से प्रकरण आरम्भ करते हैं । इसमें पहले प्रकृति पुरुष की अनादिता का प्रतिपादन करते हुए समस्त गुण और विकारों को प्रकृति जन्य बतलाते हैं – |
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− | '''प्रकृतिं | + | '''प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।'''<br /> |
'''विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान् ।।19।।''' | '''विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान् ।।19।।''' | ||
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− | प्रकृति और | + | प्रकृति और पुरुष, इन दोनों को ही तू अनादि जान । और राग-द्वेषादि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न जान ।।19।। |
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− | प्रकृतिम् = प्रकृति अर्थात् त्रिगणमयी मेरी माया ; च = और ; | + | प्रकृतिम् = प्रकृति अर्थात् त्रिगणमयी मेरी माया ; च = और ; पुरुषम् = जीवात्मा अर्थात् क्षेत्रज्ञ ; उभौ = इन दोनों को ; एव = ही (तूं) ; अनादी = अनादि ; विद्धि = जान ; च = और ; विकारान् = रागद्वेषादि विकारों को ; च = तथा ; गुणान् = त्रिगुणात्मक संपूर्ण पदार्थों को ; अपि = भी ; प्रकृतिसंभवान् = प्रकृति से ही उत्पन्न हुए ; विद्धि = जान ; |
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१२:१९, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
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गीता अध्याय-13 श्लोक-19 / Gita Chapter-13 Verse-19
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