"गीता 13:7" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>')
 
(३ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ५ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{menu}}<br />
+
{{menu}}
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<tr>
 
<tr>
पंक्ति २३: पंक्ति २३:
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
  
श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव, दम्भाचरण का अभाव, किसी भी प्राणी को किसी प्रकार भी न सताना, क्षमाभाव , मन –वाणी आदि की सरलता, श्रद्धा-भक्ति सहित गुरू की सेवा, बाहर-भीतर की शुद्धि, अन्त:करण की स्थिरता और मन-इन्द्रियों सहित शरीर निग्रह ।।7।।
+
श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव, दम्भाचरण का अभाव, किसी भी प्राणी को किसी प्रकार भी न सताना, क्षमाभाव , मन –वाणी आदि की सरलता, श्रद्धा-भक्ति सहित गुरु की सेवा, बाहर-भीतर की शुद्धि, अन्त:करण की स्थिरता और मन-इन्द्रियों सहित शरीर निग्रह ।।7।।
  
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
पंक्ति ३३: पंक्ति ३३:
 
|-
 
|-
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
अमानित्वम् = श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव ; अदभ्भित्वम् = दम्भाचरण का अभाव ; अहिंसा = प्राणी मात्र को किसी प्रकार भी न सताना (और) ; क्षान्ति: = क्षमाभाव (तथा) ; आर्जवम् = मन वाणी की सरलता ; आचार्योंपासनम् = श्रद्धा भक्ति सहित गुरू की सेवा ; शौचम् = बाहर भीतर की शुद्धि ; स्थैर्यम् = अन्त:करण की स्थिरता ; आत्माविनिग्रह: = मन और इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह ;
+
अमानित्वम् = श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव ; अदभ्भित्वम् = दम्भाचरण का अभाव ; अहिंसा = प्राणी मात्र को किसी प्रकार भी न सताना (और) ; क्षान्ति: = क्षमाभाव (तथा) ; आर्जवम् = मन वाणी की सरलता ; आचार्योंपासनम् = श्रद्धा भक्ति सहित गुरु की सेवा ; शौचम् = बाहर भीतर की शुद्धि ; स्थैर्यम् = अन्त:करण की स्थिरता ; आत्माविनिग्रह: = मन और इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह ;
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति ५३: पंक्ति ५३:
 
<td>
 
<td>
 
{{गीता अध्याय}}
 
{{गीता अध्याय}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
{{गीता2}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
{{महाभारत}}
 
</td>
 
</td>
 
</tr>
 
</tr>
 
</table>
 
</table>
[[category:गीता]]
+
[[Category:गीता]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

१२:२०, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण

गीता अध्याय-13 श्लोक-7 / Gita Chapter-13 Verse-7

प्रसंग-


इस प्रकार क्षेत्र के स्वरूप और उसके विकारों का वर्णन करने के बाद अब जो दूसरे श्लोक में यह बात कही थी कि क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का जो ज्ञान है, वही मेरे मत से ज्ञान है- उस ज्ञान को प्राप्त करने के साधनों का 'ज्ञान' के ही नाम से पाँच श्लोकों द्वारा वर्णन करते हैं-


अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् ।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रह: ।।7।।



श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव, दम्भाचरण का अभाव, किसी भी प्राणी को किसी प्रकार भी न सताना, क्षमाभाव , मन –वाणी आदि की सरलता, श्रद्धा-भक्ति सहित गुरु की सेवा, बाहर-भीतर की शुद्धि, अन्त:करण की स्थिरता और मन-इन्द्रियों सहित शरीर निग्रह ।।7।।

Absence of pride, freedom from hypocrisy, non-vielence, forbearance, straightness of body, speech and mind, devout service of the preceptor, internal and external purity, steadfastness of mind and control of body, mind and the senses. (7)


अमानित्वम् = श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव ; अदभ्भित्वम् = दम्भाचरण का अभाव ; अहिंसा = प्राणी मात्र को किसी प्रकार भी न सताना (और) ; क्षान्ति: = क्षमाभाव (तथा) ; आर्जवम् = मन वाणी की सरलता ; आचार्योंपासनम् = श्रद्धा भक्ति सहित गुरु की सेवा ; शौचम् = बाहर भीतर की शुद्धि ; स्थैर्यम् = अन्त:करण की स्थिरता ; आत्माविनिग्रह: = मन और इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • गीता अध्याय-Gita Chapters
    • गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
    • गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
    • गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
    • गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
    • गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
    • गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
    • गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
    • गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
    • गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
    • गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
    • गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
    • गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
    • गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
    • गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
    • गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

</sidebar>