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− | भारत = हे भारत ; एवम् = इस प्रकार तत्त्व से ; य: = जो ; असंमूढ: = ज्ञानी पुरूष ; माम् = मेरे को ; पुरूषोत्तमम् = पुरूषोत्तम ; जानाति = जानता है ; स: = वह ; सर्ववित् = सर्वज्ञ पुरूष ; सर्वभावेन = सब प्रकार से निरन्तर ; माम् = मुझ वासुदेव परमेश्र्वर को ही ; भजति = भजता है ; | + | भारत = हे भारत ; एवम् = इस प्रकार तत्त्व से ; य: = जो ; असंमूढ: = ज्ञानी पुरुष ; माम् = मेरे को ; पुरुषोत्तमम् = पुरुषोत्तम ; जानाति = जानता है ; स: = वह ; सर्ववित् = सर्वज्ञ पुरुष ; सर्वभावेन = सब प्रकार से निरन्तर ; माम् = मुझ वासुदेव परमेश्र्वर को ही ; भजति = भजता है ; |
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१२:०५, १४ फ़रवरी २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-15 श्लोक-19 / Gita Chapter-15 Verse-19
प्रसंग-
अब ऊपर कहे हुए प्रकार से भगवान् को पुरुषोत्तम समझने वाले पुरुष की महिमा और लक्षण बतलाते हैं-
यो मामेवमसंमूढ़ो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।।19।।
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हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">भारत</balloon> ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ <balloon title="मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">वासुदेव</balloon> परमेश्वर को ही भजता है ।।19।।
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Arjuna, the wise man who thus realizes Me as the Supreme Person,—knowing all, he constantly worship Me (the all-pervading Lord) with his whole being. (19)
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भारत = हे भारत ; एवम् = इस प्रकार तत्त्व से ; य: = जो ; असंमूढ: = ज्ञानी पुरुष ; माम् = मेरे को ; पुरुषोत्तमम् = पुरुषोत्तम ; जानाति = जानता है ; स: = वह ; सर्ववित् = सर्वज्ञ पुरुष ; सर्वभावेन = सब प्रकार से निरन्तर ; माम् = मुझ वासुदेव परमेश्र्वर को ही ; भजति = भजता है ;
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