"गीता 3:21" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
(नया पृष्ठ: {{subst: गीता }})
 
पंक्ति ३: पंक्ति ३:
 
<tr>
 
<tr>
 
<td>
 
<td>
==गीता अध्याय-X श्लोक-X / Gita Chapter-X Verse-X==  
+
==गीता अध्याय-3 श्लोक-21 / Gita Chapter-3 Verse-21==  
 
{| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;"
 
{| width="80%" align="center" style="text-align:justify; font-size:130%;padding:5px;background:none;"
 
|-
 
|-
पंक्ति ९: पंक्ति ९:
 
'''प्रसंग-'''
 
'''प्रसंग-'''
 
----
 
----
हिन्दी टॅक्स्ट
+
इस प्रकार श्रेष्ठ महापुरूष के आचरणों को लोकसंग्रह में हेतु बतलाकर अब भगवान् तीन श्लोकों में अपना उदाहरण देकर वर्णाश्रम के अनुसार विहित कर्मों के करने की अवश्यकर्तव्यता का प्रतीपादन करते हैं-
 
----
 
----
 
<div align="center">
 
<div align="center">
'''श्लोक'''
+
'''यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: ।'''<br />
 +
'''स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते ।।21।।'''
 
</div>
 
</div>
 
----
 
----
पंक्ति २१: पंक्ति २२:
 
|-
 
|-
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
'''शीर्षक'''
+
श्रेष्ठ पुरूष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरूष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं । वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है ।।21।।
----
 
हिन्दी टॅक्स्ट
 
  
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
'''Heading'''
+
For whatever a great man does, that very thing other men also do; whatever standard he sets up; the generality of men follow the same.(21)
----
 
English text.
 
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति ३५: पंक्ति ३२:
 
|-
 
|-
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
 
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
यहाँ संस्कृत शब्दों के अर्थ डालें
+
श्रेष्ठ: = श्रेष्ठ पुरूष ; यत् = जो ; यत् = जो ; अचरति = आचरण करता है ; इतर: = अन्य ; जन: = पुरूष (भी) ; तत् = उस ; तत् = उसके ; एव = ही (अनुसार बर्तते हैं) ; स: = वह पुरूष ; यत् = जो कुछ ; प्रमाणम् = प्रमाण ; कुरूते = कर देता है ; लोक: = लोग (भी) ; तत् = उसके ; अनुवर्तते = अनुसार बर्तते हैं ;
 
|-
 
|-
 
|}
 
|}
पंक्ति ४२: पंक्ति ३९:
 
</table>
 
</table>
 
<br />
 
<br />
<div align="center" style="font-size:120%;">'''<= पीछे Prev | आगे Next =>'''</div>   
+
<div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 3:20|<= पीछे Prev]] | [[गीता 3:22|आगे Next =>]]'''</div>   
 
<br />
 
<br />
{{गीता अध्याय 1}}
+
{{गीता अध्याय 3}}
 
{{गीता अध्याय}}
 
{{गीता अध्याय}}
 
[[category:गीता]]
 
[[category:गीता]]

१२:३०, ८ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-3 श्लोक-21 / Gita Chapter-3 Verse-21

प्रसंग-


इस प्रकार श्रेष्ठ महापुरूष के आचरणों को लोकसंग्रह में हेतु बतलाकर अब भगवान् तीन श्लोकों में अपना उदाहरण देकर वर्णाश्रम के अनुसार विहित कर्मों के करने की अवश्यकर्तव्यता का प्रतीपादन करते हैं-


यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: ।
स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते ।।21।।



श्रेष्ठ पुरूष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरूष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं । वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है ।।21।।

For whatever a great man does, that very thing other men also do; whatever standard he sets up; the generality of men follow the same.(21)


श्रेष्ठ: = श्रेष्ठ पुरूष ; यत् = जो ; यत् = जो ; अचरति = आचरण करता है ; इतर: = अन्य ; जन: = पुरूष (भी) ; तत् = उस ; तत् = उसके ; एव = ही (अनुसार बर्तते हैं) ; स: = वह पुरूष ; यत् = जो कुछ ; प्रमाणम् = प्रमाण ; कुरूते = कर देता है ; लोक: = लोग (भी) ; तत् = उसके ; अनुवर्तते = अनुसार बर्तते हैं ;


<= पीछे Prev | आगे Next =>


अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • गीता अध्याय-Gita Chapters
    • गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
    • गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
    • गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
    • गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
    • गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
    • गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
    • गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
    • गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
    • गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
    • गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
    • गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
    • गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
    • गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
    • गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
    • गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

</sidebar>