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०७:५४, १५ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-30 / Gita Chapter-3 Verse-30
प्रसंग-
इस प्रकार अर्जुन को उनके कल्याण का निश्चित साधन बतलाते हुए भगवान् उन्हें युद्ध करने की आज्ञा देकर अब उसका अनुष्ठान करने के फल का वर्णन करते हैं-
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा ।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वर: ।।30।।
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मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझ में अर्पण करके आशा रहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर ।।30।।
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Therefore, dedicating all actions to Me with your mind fixed on Me, the self of all freed from hope and the feeling of meum and cured of mental fever, fight. (30)
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अध्यात्मचेतसा; = ध्याननिष्ठ चित्त से; सर्वाणि = संपूर्ण; कर्माणि = कर्मों को; मयि = मुझमें; संन्यस्य = समर्पण करके; निराशी: = आशारहित; निर्मम: = ममतारहित; भूत्वा = होकर; विगतज्वर: = सन्तापरहित(हुआ); युध्यस्व = युद्व कर;
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