"गीता 3:35" के अवतरणों में अंतर
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− | मनुष्य का स्वधर्म पालन करने में ही कल्याण है, पर धर्म का सेवन और निषिद्धकर्मों का आचरण करने में सब प्रकार से हानि है ।इस बात को भलीभाँति समझ लेने के बाद भी मनुष्य अपने इच्छा, विचार और धर्म के विरूद्ध पापाचार में किस कारण प्रवृत्त हो जाते हैं- इस बात के जानने की इच्छा से अर्जुन पूछते हैं- | + | मनुष्य का स्वधर्म पालन करने में ही कल्याण है, पर धर्म का सेवन और निषिद्धकर्मों का आचरण करने में सब प्रकार से हानि है ।इस बात को भलीभाँति समझ लेने के बाद भी मनुष्य अपने इच्छा, विचार और धर्म के विरूद्ध पापाचार में किस कारण प्रवृत्त हो जाते हैं- इस बात के जानने की इच्छा से [[अर्जुन]] पूछते हैं- |
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०५:२६, ९ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-35 / Gita Chapter-3 Verse-35
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अध्याय तीन श्लोक संख्या Verses- Chapter-3 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 |
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