गीता 3:39

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गीता अध्याय-3 श्लोक-39 / Gita Chapter-3 Verse-39

प्रसंग-


इस प्रकार काम के द्वारा ज्ञान को आवृत बतलाकर अब उसे मरने का उपाय बतलाने के उद्देश्य से उसके वासस्थान और उसके द्वारा जीवात्मा के मोहित किये जाने का प्रकार बतलाते है-


आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा ।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ।।39।।



और हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले कामरूप ज्ञानियों के नित्य वैरी के द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढका हुआ है ।।39।।

And, Arjuna, Knowledge stand covered by this eternal enemy of the wise, known as desire, which is insatiable like fire.(39)


च = और; कौन्तेय =हे अर्जुन; एतेन = इस; अनलेन = अग्नि (सदृश); दुष्णूरेण = न पूर्ण होने वाले; कामरूपेण = कामरूप; ज्ञानिन: = ज्ञानियों के; नित्यवैरिणा =नित्य बैरी से; आवृतम् = ढका हुआ है



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

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