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इसलिये हे भरतवंशी [[अर्जुन]]! तू हृदय में स्थित इस अज्ञान जनित अपने संशय का विवेक ज्ञान रूप तलवार द्वारा छेदन करके समत्व रूप कर्मयोग में स्थित हो जा और युद्ध के लिये खड़ा हो जा ।।42।।  
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इसलिये हे भरतवंशी <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
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०६:१९, ३ दिसम्बर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-4 श्लोक-42 / Gita Chapter-4 Verse-42


तस्मादज्ञानसंभूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मन: ।
छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ।।42।।




इसलिये हे भरतवंशी <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon>! तू हृदय में स्थित इस अज्ञान जनित अपने संशय का विवेक ज्ञान रूप तलवार द्वारा छेदन करके समत्व रूप कर्मयोग में स्थित हो जा और युद्ध के लिये खड़ा हो जा ।।42।।


Therefore, Arjuna, slashing to pieces, with the sword of wisdom, this doubt in your heart, born of ignorance, establish yourself in karmayoga in the shape of even-temperedness, and stand up for the fight. (42)


तत्मात् = इससे; भारत = हे भरतवंशी अर्जुन (तूं); योगम् = समत्वबुद्विरूप योग में; आतिष्ठ = स्थित हो(और); अज्ञानसंभूतम् = अज्ञान से उत्पन्न हुए; हृत्स्थम् = हृदय में स्थित; एनम् = इस; आत्मन: = अपने; संशयम् = संशय को; ज्ञानसिना = ज्ञानरूप तलवार द्वारा; छित्वा = छेदन करके (युद्ध के लिये); उत्तिष्ठ = खड़ा हो।



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

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