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००:३४, ५ मार्च २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-4 श्लोक-7 / Gita Chapter-4 Verse-7
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।7।।
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हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनज्जय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">भारत</balloon> ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।।7।।
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Whenever and wherever there is a decline in religious practice, O descendant of Bharata, and a predominant rise of irreligion at that time I descend Myself. (7).
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भारत = हे भारत; यदा = जब; यदा = जब; धर्मस्य = धर्म की; ग्लानि: = हानि(और ); अधर्मस्य = अधर्म की; अभ्युत्थानम् = वृद्वि; भवति =होती है; तदा = तब तब; हि = ही; अहम् = मैं; आत्मानम् = अपने रूप को; सृजामि = रचना हूं अर्थात प्रकट करता हूं।
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